ग़ज़ल - चाहत ©प्रशान्त
ख़ुदा से दूर जाना चाहता हूँ । ख़ुदाई आज़माना चाहता हूँ । नई दुनिया बसाना चाहता हूँ । मगर इंसाँ पुराना चाहता हूँ । चरागों को जलाकर एक दिन मैं, हवाओं में उड़ाना चाहता हूँ । खिलौनों की तरह दिल तोड़ते हो, ये लो, मैं दिल लगाना चाहता हूँ । सितारों को हटाकर आसमाँ से, वहाँ जुगनूँ बिछाना चाहता हूँ । फ़लक के चाँद-तारों को बुलाकर, उन्हें सूरज दिखाना चाहता हूँ । मुझे अच्छी ग़ज़ल कहनी न आई, ‘ग़ज़ल’ अपनी सुनाना चाहता हूँ । ~ ©प्रशान्त ‘ग़ज़ल’