ग़ज़ल - चाहत ©प्रशान्त
ख़ुदा से दूर जाना चाहता हूँ ।
ख़ुदाई आज़माना चाहता हूँ ।
नई दुनिया बसाना चाहता हूँ ।
मगर इंसाँ पुराना चाहता हूँ ।
चरागों को जलाकर एक दिन मैं,
हवाओं में उड़ाना चाहता हूँ ।
खिलौनों की तरह दिल तोड़ते हो,
ये लो, मैं दिल लगाना चाहता हूँ ।
सितारों को हटाकर आसमाँ से,
वहाँ जुगनूँ बिछाना चाहता हूँ ।
फ़लक के चाँद-तारों को बुलाकर,
उन्हें सूरज दिखाना चाहता हूँ ।
मुझे अच्छी ग़ज़ल कहनी न आई,
‘ग़ज़ल’ अपनी सुनाना चाहता हूँ ।
~ ©प्रशान्त ‘ग़ज़ल’
क्या कमाल, एक से बढ़कर एक शेर हुए हैं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल बेटा 🌺🌺🙏
जवाब देंहटाएंसरोज गुप्ता
बेहतरीन बेबाक़ गज़ल 💐
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा ग़ज़ल सरजी👌👌🙏
जवाब देंहटाएं