कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति
नमन मां शारदे, नमन, लेखनी ना ग़म तेरे आने का है, ना ग़म तेरे जाने का है। गुज़ारे थे जो लम्हें साथ, ग़म तो उनके गुज़र जाने का है। बड़े आराम से गुज़रे शाय़द अब ये ज़िन्दगी, पर ग़म अब तेरे ना सताने का है। रातें भी होंगी शायद अब सुकून भरी, पर ग़म तेरा ख्वाबों में ना आने का है। यादें तो क़ैद हो गई इन आँखों में, पर ग़म नज़रें ना मिल पाने का है। तुम तो आए और आकर चले गए, ग़म तो वक्त के ना ठहर पाने का है। ना ग़म तेरे आने का है, ना ग़म तेरे जाने का है। गुज़ारे थे जो लम्हें साथ, ग़म तो उनके गुज़र जाने है। ©सम्प्रीति