कविता-पावस ©संजीव शुक्ला
नमन, माँ शारदे नमन, लेखनी शांत सरल नीले अंबर में, कुछ चंचल मेघों का आना l मन का उजला कोना-कोना, अनायास श्यामल कर जाना l क्षण-क्षण नील गगन के पट पर, पल-पल रूप बदलते बादल l जब-जब अठखेली करते हैँ, शीतल पवन झकोरे चंचल l जग उठते स्मृतियाँ बनकर, बीते युग के कुछ सुंदर पल l शीतल हो जाता है क्षण भर, तृषित हृदय का तप्त मरुस्थल l दूर क्षितिज से अंजुलि में भर, जब घन लाते हैँ शीतल जल l सरिता इठलाकर बह चलती, शोर मचाते झरने कल-कल l कभी पखावज पर मेघों की, देकर ताली ताल मिलाना l कभी बून्द की रिमझिम सरगम, संग झूमना,हँसना,गाना l किन्तु विषादी भी होती है, कभी-कभी सावन की झरझर l झरती हैँ पावस की बूंदे, जब अंबर से सुधियाँ बनकर l ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'