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कविता-पावस ©संजीव शुक्ला

नमन, माँ शारदे  नमन, लेखनी  शांत सरल नीले अंबर में,  कुछ चंचल मेघों का आना l मन का उजला कोना-कोना,  अनायास श्यामल कर जाना l क्षण-क्षण नील गगन के पट पर,  पल-पल रूप बदलते बादल l जब-जब अठखेली करते हैँ,  शीतल पवन झकोरे चंचल l जग उठते स्मृतियाँ बनकर,  बीते युग के कुछ सुंदर पल l शीतल हो जाता है क्षण भर,  तृषित हृदय का तप्त मरुस्थल l दूर क्षितिज से अंजुलि में भर, जब घन लाते हैँ शीतल जल l सरिता इठलाकर बह चलती,  शोर मचाते झरने कल-कल l कभी पखावज पर मेघों की,  देकर ताली ताल मिलाना l कभी बून्द की रिमझिम सरगम,  संग झूमना,हँसना,गाना l किन्तु विषादी भी होती है,  कभी-कभी सावन की झरझर l झरती हैँ पावस की बूंदे,  जब अंबर से सुधियाँ बनकर l ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

गीत- दरसन ©दीप्ति सिंह

  राधेकृष्ण नमन,माँ शारदे नमन, लेखनी तोरे दरसन को तरसे अँखियाँ  बिनु दरसन के बरसे अँखियाँ  तोहे खोजन को बेकल होकर निकली कबसे घरसे अँखियाँ   तोहे खोजूँ बृज की गलियन में  तोहे खोजूँ मैं वृंदावन में  तोहे खोज न पाऊँ जो मन में  भींजी हैं इस डर से अँँखियाँ  तुम हो पायल की रूनझुन में  तुम हो मुरली की गुनगुन में  तुम हो इस धड़कन की धुन में  ये सोचूँ तो हरसे अँखियाँ तुम नामी हो,तुम नाम भी हो। तुम श्यामा हो,तुम श्याम भी हो। तुम ही सब तीरथ,धाम भी हो। सुनती ये गुरुवर से अँखियाँ ।। जो तेरा सुमिरन हो जाए  तो मन वृंदावन हो जाए  बस अविरल चिंतन हो जाए  ये ही चाहे भीतर से अँखियाँ । ©दीप्ति सिंह "दीया"

गीत- ज़िन्दगानी ©गुंजित जैन

नमन, माँ शारदे नमन, लेखनी बहुत ख़ास तुम हो गई ज़िन्दगी में,  बताएं तुम्हें क्या, तुम्हीं ज़िन्दगानी, तुम्हारे बिना सब, अधूरे रहें हैं, ग़ज़ल, शायरी और किस्से, कहानी। तुम्हें देखकर बूँद ये बारिशों की, हमें बेवजह छेड़ जाने लगीं हैं, बरसती घटा की, खिलीं महफ़िलें भी, हज़ारों हसीं गीत गाने लगीं हैं, तुम्हारे जवां जिस्म को छू गया जो, गुलों सा महकने लगा शोख़ पानी, बहुत ख़ास तुम हो गई ज़िन्दगी में,  बताएं तुम्हें क्या, तुम्हीं ज़िन्दगानी। कभी चार हों जब हमारी नज़र से, नज़र क़ाबिल-ए-दीद कमसिन तुम्हारी, शरारत करें जा रहीं इस तरह से, नज़र उम्र भर ये तुम्हारी-हमारी, नज़र खुशनुमा बे-क़रारी बढाए, इन्हीं में कहीं शायरी डूब जानी, बहुत ख़ास तुम हो गई ज़िन्दगी में,  बताएं तुम्हें क्या, तुम्हीं ज़िन्दगानी। खनकती हुई खूबसूरत सदा में, नशा मुख़्तलिफ़ मयकदों का भरा है, ज़ुबाँ से निकलने लगे लफ्ज़ जब-जब, लगा गुनगुनाती हुई शाइरा है, महकते हुए लफ्ज़ मोती बनाकर, वफ़ा की हसीं गीत-माला बनानी, बहुत ख़ास तुम हो गई ज़िन्दगी में,  बताएं तुम्हें क्या, तुम्हीं ज़िन्दगानी। करे साथ कामिल हमें बस तुम्हारा, मुकम्मल तुम्हारे बिना कब रहे हम? हवा की नरम सर्