मानभंग ©नवल किशोर सिंह
लुंचित पड़ी भू पर लुठित, आखेट कोई कर गया । चैतन्य को दल घात से, संताप मन में भर गया । पीड़ा कहर से शीत सी, वो काँपती भयभीत सी, हैवान तेरा कर्म यह, ममता विलज्जित कर गया ॥ सिंगार है खंडित हुआ, चीत्कारती वह ज़ोर से । कल्याण को आया नहीं, कोई किसी भी ओर से । संभालती परिधान को, मर्दित हुये उस मान को, मोहन मगन निज भाव में, अंजान बन उस शोर से॥ यह काल है विकराल सा, संस्कार है लोपित हुआ । भौतिक विषय मदपान से, उजियार फिर गोपित हुआ। अंधेपना में ढूंढते, कारण पकड़ के मूढ़ते , वो क्यों चली उस ओर थी, आरोप यह रोपित हुआ ॥ माता कहो किस भाव से, संतान को है पालती । यह वेदना कब चूकती, उनके हृदय भी सालती ॥ हम नीव ऐसी ढाल दें , साहस सुता में डाल दें, दुर्गा कहाएँ बेटियाँ, दुष्कर्मनों को बालती ॥ -©नवल किशोर सिंह Click Here For Watch In YouTube