बहते अहसास ©सम्प्रीति

 मेरे बागीचे में एक गुलाब है तुम सा,

जो  नाराज होकर मुरझा जाता है,

खुश हो तो खिल के दिखाता है,

गुस्सा हो तो बिखर जाता है,

बिखर कर एक हफ्ते तक नहीं आता

बिल्कुल तुम्हारी तरह,

पर मैं हर रोज़ जाती हूँ,

उससे ना सही उसके पत्तों से बतियाती हूँ,

जैसे तेरे इंतज़ार में खुद को तस्वीरों से बहलाती हूँ,

हाँ बिल्कुल तुम सा है वो,

तेरे इतने दूर होने के बावजूद

तेरे साथ का अहसास कराता है।

-© सम्प्रीति

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'