शाइरी © रजनी सिंह
तेरी शहवत से हमें ज़ब बेख़बर रक्खा गया l यानी फिर हर एक शय से मोतबर रक्खा गया l पहले आँखें ज़िस्म-ओ-जाँ को फिर ज़बीन-ए-ख़ास को... उनके पहलू में हमारा दिल किधर रक्खा गया l उस निग़ाह-ए-नाज़ से याँ तो सभी बेज़ार थे.. दिल यहाँ किसने लगाया दिल मगर रक्खा गया l कौन सोचे किसने सोचा कौन सोचेगा यहाँ तुम उधर रक्खे गए हमको इधर रक्खा गया l हम तो उनकी आरज़ू सर आँख पे रखते रहे... पर वफाओं को हमारी दर-ब-दर रक्खा गया l जानते हैँ वो न होगी शाइरी उनके बगैर... इसलिए शाइर हमारा क़ैद कर रक्खा गया l ©rajni singh