जीवन के रंग ©सरोज गुप्ता
विस्तृत नीले दूर क्षितिज पे
बादल को घिरते देखी हूँ...
स्वच्छ शुभ्र उज्जवल पर्वत पर
बूंदों में परिवर्तित होकर
प्रिय को अपने आलिंगित कर
प्रीता को झरते देखी हूँ....
बादल को घिरते देखी हूँ....
ऋतु बसंत का सुप्रभात वो
रवि की शीतलता का भास जो
मंद पवन मुस्का कर आया
उपवन की कलियों को जगाया
छुअन प्रेम से फिर अपने वो
आलिंगन से पुष्प खिलाया
सकुचाई सी सुरभित होकर
प्रीत भाव से पल्वित कोंपल
मंजरी को खिलते देखी हूँ...
बादल को घिरते देखी हूँ....
नव यौवन से भरी रूपसी
चाल से जिसके उठे हूंँक सी
रूपराशि छलकाते ऐसे
धन कुबेर भी माटी लागे
मटमैली वो पुष्प कमल सी
जैसे पावन गंगा जल सी
चंचल चितवन मृगनयनी वो
निज सुंगध से अंजानी को
कस्तूरी फिरते देखी हूँ...
बादल को घिरते देखी हूँ...
ठंड की हाड़ कंपाती रातें
गीली सीली सी बरसातें
उमस भरी दुपहरी जेठ की
रोज कमा रोटी वो पेट की
सांझ ढले जब घर को आए
बच्चों के चेहरे खिल जाए
अर्धांगिनी दे लोटा पानी
दिन प्रतिदिन की यही कहानी
शाश्वत प्रेम झोपड़ी में भी
सूखी रोटी चटनी में भी
प्रेम को यूँ जीते देखी हूँ...
बादल को घिरते देखी हूँ....
@सरोज गुप्ता
Bahut Sundar rachna ma'am 🙏
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आपका तुषार 🙏🙏💐💐
हटाएंउम्दा कविता👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका गुंजित🙏🙏 💐💐
हटाएंबहुत शुक्रिया आपका गुंजित 🙏🙏💐💐
हटाएंअति सुंदर एवं मनमोहक सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका दीप्ति जी🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर 💐
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी🙏🙏🙏
हटाएंबहुत खूबसूरत 👌
जवाब देंहटाएंआभार आपका निशा जी🙏🙏
हटाएंआभार आपका निशा जी🙏🙏
हटाएं👌🏼👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका आशीष जी 🙏🙏🙏💐💐💐
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