ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला
सबको कदमों में झुकाने का हुनर रखते है अपने अंदाज़ में शाहों का असर रखते हैँ l आपको फुरसतों में याद किया शुक्र करो... वर्ना बस काम के लोगों की कदर रखते हैँ l आप क्या हैँ के ख़ुदा से भी अना है उनकी ... क्या अनादार हैँ रिश्तों को इतर रखते हैँ l उनकी सानी में भला कौन जहाँ में होगा..... वो तो नायाब हैँ सुर्खाब के पर रखते हैँ l प्यार ज़्ज़्बात वफ़ा की उमीद उनसे जो... खुद को बेकार के मसलों से कगर रखते हैँ l आस इल्ज़ाम की रक्खो तो भलाई करना... लोग बातों में कहाँ कोर कसर रखते हैँ l 'रिक्त' ज़ाहिल हो ज़हानत के सलीके सीखो... बिक रहा हो जो, उसी घर पे नज़र रखते हैँ l ©संजीव शुक्ला