ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला
कल चाँद काफ़ी दूर था l
बस चाँदनी का नूर था l
था अर्श बेहद शाद कल ...
पहलू में हुस्न-ए-हूर था l
बस बेखुदी बेताबियाँ....
आलम नशे में चूर था l
मदहोशियाँ बहकी फ़िज़ा...
हरसू अजीब....सुरूर था l
कलियाँ खिलीं महका समा ...
रोशन गुहर....... मगरूर था l
वादी में बिखरी चाँदनी....
दिलकश समा भरपूर था l
सरगोशियाँ करती हवा...
हर दर्द ग़म..काफूर था l
©संजीव शुक्ला रिक्त
अहा..... लाजवाब ग़ज़ल सर.... 🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल भाई 👏👏👏🌺🌺
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रूमानी गज़ल 💐💐💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल sir 👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गजल सर💐💐💐💐
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