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दोहावली - नटवर नंद किशोर ©दीप्ति सिंह 'दीया'

राधेश्याम नमन, माँ शारदे नमन, लेखनी अधरों पर मुरली सजे,शीश सजाए मोर। कोटि काम लज्जित करें, नटवर नंद किशोर ।। राधा उर जिनके बसें, मीरा हिय में आप। प्रेम सहित सुमिरन करें, मिट जाएँ संताप ।। सब के स्वामी साँवरे, हरते मन की त्रास । अर्जी है ये आपसे, करिये अंतर वास।। नाम सुधा-रस आपका, करता भाव विभोर । कृष्ण कहें, कान्हा कहें, कहते माखनचोर।। छवि अति न्यारी आपकी,देखे मन के नैन। किस विधि पाऊँ आपको,सोचे ये दिन-रैन ।। ©दीप्ति सिंह "दीया"

नज़्म- चाँद उतरेगा ©सूर्यम मिश्र

भरूँगा आंख में पानी, तो उसमें चाँद उतरेगा। निकल कर फिर लड़ेंगे हम, उसी के दरमियां आकर। बढ़ा कर हाथ हम उस तक, कहेंगे घूम लो चल कर।। यकीं है, वो न आएगा, मगर कहने में खामी क्या? रहेंगे साथ उसके हम, वफ़ा की इब्तिदामी क्या? भगाएगा वो चौखट से, मगर हम भी न मानेंगे। कहेंगे, इश्क है तुमसे, तुम्हारा ग़म न जानेंगे।। मगर इस बार रो करके, वो मुझसे हाथ जोड़ेगा। कहेगा यार तुम जाओ, मेरा वो क़ल्ब तोड़ेगा।। मेरा फिर ख़्वाब टूटेगा, ये आंखें ख़ुश्क होंगी जब। उठूंगा, चल पडूंगा मैं, किसी इक रास्ते पर तब।। चलूंगा और चलूंगा मैं, चलूंगा चल सकूं तब तक। भरूंगा सांस भर-भर के, भरी जाएगी वो जब तक।। मगर फिर ख़त्म होगी हद, उलट कर गिर पडूँगा मैं। न उठ पाऊंगा मैं अब फिर कहो कब तक लडूंगा मैं! गिरा बेजान मैं बस यूँ, कहूंगा फिर कि आ जाओ। हैं नीली पड़ गईं आँखें, तुम आओ औ समा जाओ।। मगर फिर से वो दिन आकर, उसे ले साथ जाएगा।  वो अपने पास रख लेगा, मुझे वो ना दिखाएगा।। जमीं पर हम गिरे होंगे, लिखेंगे आखिरी ग़ज़लें। न चाहेंगे कि फिर से सांस, उखड़ी है वो अब सम्हले।। मेरे सँग यार फ़िर ऐसे, वबा का दौर गुज़रेगा। भरूंगा आँख में पानी, तो उसमे

ग़ज़ल ©अंजलि

तेरे ज़िक़्र के कफ़स में कैद तेरी याद होगी, मिलेगी रिहाई जब तुझसे मुलाकात होगी। कशिश से सजे हैं तेरे मक़तूबों के अल्फा़ज, देखा जिस पल नज़र भर,क्या सौगात होगी। तेरे बिना बेचैन,अकेली लगती है स्याह रातें, तू जो हुआ साथ अगर क्या हसीं रात होगी। इंतजार में हूँ हमारी मोहब्बत की बरसात के ‌, तू जो छू ले ख़ालिस उल्फत सी बरसात होगी। अक़ीदत के असास से साथ गुज़रेगी जिंदगी, रूख्सती के बाद भी आख़िरत तेरे साथ होगी।  ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

दिलकश आलम इतना काजल का होगा, आँखों पर इक पहरा काजल का होगा। गुस्ताख़ी जब ये आँखें कर जाएंगी, उस पर थोड़ा गुस्सा काजल का होगा। सूरज के रहते ये शब कैसे आई? शायद ये अंधेरा काजल का होगा। पास झील के पेड़ों सी पलकें होंगी, और उस पर नज़्ज़ारा काजल का होगा। मेरे दिल पर तीर निग़ाहों ने मारा, मगर निशाना पक्का काजल का होगा। यूँ आँखों में खोना मेरी गलती थी, ऐब मगर थोड़ा-सा काजल का होगा। इन नाज़ुक गालों पर कोई तिल है या, इनपर उतरा कतरा काजल का होगा। क़लम रहेगी ज़ुल्फों में उलझी उँगली, औ' स्याही का प्याला, काजल का होगा। आँखें बहती-बहती जब दरिया होंगी, "गुंजित" एक सहारा काजल का होगा। ©गुंजित जैन

क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ ©तुषार पाठक

न हूँ मै तेरे क्रश की तरह  न ही उसके जैसे दिखता हूँ , क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ।  नहीं आता मुझे लड़की पटाना  न ही उनकी बात समझता हूँ  न हूँ मैं उनकी आँखों का सितारा  पर हूँ मैं अपनी माई के लिए  दुनिया का तारा।  नहीं आता तेरी गुलाबी  होठों को पढ़ना , क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ । नहीं आता तेरी नशीली  आँखों से बचना, क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ।  नहीं हूँ मैं दूसरे जैसा जो  दिल मे होता है वह  कहता हूँ  पर जब तू सामने होती है  तोह वह भी कहने से डरता हूँ क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ।  न आता है मुझको  किसी का दिल तोड़ना , न किसके दिल के  साथ खेलना जनता हूँ, मैं जानता हूँ इश्क़ में  घायल हुए मरीजों को  इसलिए अपनी पंक्तियॉ   से उन पर मरहम लगता हूँ।  पर क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ।  ©तुषार पाठक

कविता-बादल का टुकड़ा ©संजीव शुक्ला

खुला आसमा एक बादल का टुकड़ा ...... हवा के थपेड़ों से लड़ता हुआ सा ...... परेशान फिरता भटकता फलक पर... कभी लड़खड़ा कर संभलता हुआ सा... हसीं हम सफर खूबसूरत जहां था.. घटाओं का अपना बड़ा कारवां था... भटक कर फ़लक में कहीं खो गया था...  न जाने वो कैसे ज़ुदा हो गया था ...... बहुत दूर अपनी जमी छोड़ आया .......  डगर पूछता आगे बढ़ता हुआ सा ...... वो अपनी घटा आसमाँ खोजता सा...... वो खोया हुआ आशियाँ खोजता सा.... नए मोड़ पर कुछ अटकता हुआ सा..... सहमता डरा सा झिझकता हुआ सा.... बड़ा कोई बादल मिला रास्ते में ..... उसे देख ठिठका सहमता हुआ सा ........ कहीं रौशनी दूर देखी शफ़क पे ... उसी ओर बढ़ने लगा वो फ़लक पे..... ज़ुदा कारवां से भटकता मुसाफिर ... उम्मीदों के दामन पकड़ता हुआ सा.. निगाहों में शोला कोई जल रहा था... कोई ख्वाब टूटा हुआ पल रहा था... लिए प्यास रंजूर पाँवों में छाले....  संभाले मुकम्मल नमी चल रहा था ....... बहुत प्यासी अपनी ज़मीं खोजता सा ..... बदस्तूर मुश्किल सफर थक चुका सा..... खुला आसमाँ एक बादल का टुकड़ा... हवा के थपेड़ों से लडता हुआ सा..... ©संजीव शुक्ला रिक्त

छंद ©लवी द्विवेदी

बाँवरी विभावरी वियोग प्रेम अश्रु धार,  पादुका पखार आस आसनी दई तुषार। तर्जनी ललाम श्याम डोलती करे विहार, पंख मौर सौम्य देख वक्ष हर्षिता अपार।  डोलते अनेक प्रश्न किन्तु शिल्पजा विहीन,  कंज रूप लुप्त प्राय हस्त, पंखुड़ी विलीन।  वाग वंदिता अचार्य हास्य मंत्रणा प्रवीन,  चंचला अपार किन्तु बैन श्याम को महीन। वक्ष वाग हो अधीन भावना रही हिलोर,  पूछती विनम्र कल्पना लजा रही चकोर। भाव भंगिमा सप्रेम प्रेम पाश प्रेम डोर, प्रश्न ले प्रमोद नाचते अनेक ओर छोर। चाल वक्र, ढाल वक्र, मोर पंख वक्र वाम, नाम वक्र, बाँकुरे किशोर साँवरे प्रणाम।  श्याम रंग, श्याम केश, श्याम नैन, श्याम नाम, श्याम बैन देख देख जीय ना रिझात श्याम? ©लवी द्विवेदी 'संज्ञा'

ये जिन्दगी है एक जादुई किताब ©सरोज गुप्ता

 जिसमें होते हैं हर सवालों के जवाब, कहीं होती है खुशी की कोई कविता कहीं बेइंतेहां गमों का आजाब । ये जिन्दगी है एक जादुई किताब ।। किसी पन्ने में है दादी नानी के जादुई किस्से, किसी में दादा नाना संग सैर सपाटे के किस्से, किसी पन्ने में बचपन है भरा-पूरा बेहिसाब । इसीलिए ये जिन्दगी है एक जादुई किताब ।। कहीं हैं रंगीन त्योहारों के रंग-बिरंगे नजारे, कहीं है मातमी माहौल, आंसुओं की कतारें, कहीं महबूब की गुफ्तगूं और इश्कियां ख्वाब । इसीलिए ये जिन्दगी है एक जादुई किताब ।। किसी पन्ने में छाई बच्चों की उन्मुक्त किलकारी, किसी पन्ने में घर परिवार की भरपूर जिम्मेदारी, कहीं जिन्दगी के रोजमर्रा के हजारों अस्वाब । इसीलिए ये जिन्दगी है एक जादुई किताब ।। ©सरोज गुप्ता

पीयूष वर्ष छंद- रूपचौदस ©रजनीश सोनी शहडोल

नमन, माँ शारदे नमन, लेखनी   छंद- पीयूष वर्ष रूपचौदस की बधाई एवं शुभकामनाएं। यह  सनातन है  चिरंतन  ज्ञान है, रूप  से ही  जगत में  पहचान है। रूप धारे हैं जगत जड़ जीव सब,  रूप विविधा दे अलग संज्ञान है।  रंग  है तो  रूप की  है  विविधता, शोध कर  रचना करे  भगवान है।  रूप चौदस  रूप यौवन के लिये,  रूप  पर  ही   मोहता  इसान  है।  कृतिमता छद्मावरण धर  रूप में,  रूप हो जाते क्षणिक श्रीमान हैं। रूप यौवन आगमित होता गमन,  किन्तु होने तक रहे अभिमान है।  सौष्ठव का पुट मिले जब रूप में,  और मारक हो चले अभियान है।  जगत में आकृष्ट करता रूप धन,  धन्य है  जो  रूप से  धनवान है।  ©रजनीश सोनी शहडोल

कविता - मैं दहलीजों पे बैठूंगा ©अंशुमान मिश्र

मैं दहलीज़ों पे बैठा हूं, कभी तो लौट आओगे, कभी फिर मुस्कुराओगे, गले फिर से लगाओगे, बहारें साथ में लेकर, वो शामें फिर  से आएंँगी, वो  बूंँदे आसमांँ से गिर, हमें फिर से  मिलाएंँगी, तुम्हें देखे  हुआ अर्सा, चलो अब लौट आओ ना, जो देखे थे  सभी  सपने, उन्हें पूरा भी है करना! ये दुनिया के सभी पागल, मुझे पागल समझते हैं, कि दिल पर चोट करते हैं, मेरा धीरज परखते  हैं! अभी भी तुलसियांँ आंँगन में, तुमको याद करती हैं, अभी भी आम की बौरें, सुनो  फरियाद करती हैं, नज़र भी थक चुकी है अब, ये सांँसे घट चुकी हैं अब, भरोसा कम नहीं है पर, उमर भी कट चुकी है अब, मगर मैं फिर सभी सपनों को आंँखों में समेटूंँगा, तुम्हारी  राह  देखूंँगा! मैं दहलीजों पे  बैठूंँगा! मैं दहलीज़ों पे  बैठा हूंँ, मैं दहलीजों पे  बैठूंँगा!                        - ©अंशुमान

ग़ज़ल ©परमानंद भट्ट

नमन, माँ शारदे नमन, लेखनी तेरी मौजूदगी माहौल में जादू जगाती है, हज़ारों फूल खिलते हैं अगर तू मुस्कराती है।   हरा या सुर्ख़ पीला रंग तुम पर ख़ूब  फबता पर, गुलाबी रंग की साड़ी मुझे बेहद सुहाती है। लरज़ कर डालियाँ उसको गले अपने लगा लेतीं , चमन में शोख़ चिड़िया जब चहकने लौट आती है। न जाने कब कहाँ पर मौत आ हमको‌ दबोचेगी, झपट्टा मार कर बिल्ली कि ज्यूँ चूहा  दबाती है। मुझे जिस नाम से अम्मा बुलाती थी जगाने को, अभी तक कान में मेरे वही आवाज़ आती है। हमें उसकी ज़रूरत है उसे है ये ग़लतफ़हमी, "ज़रा देखें हमारी बेरुख़ी क्या रंग लाती है"। 'परम' के प्यार में पागल फ़कीरों ने बताया ये, जिसे वो चाहता उसको सदा दुनिया सताती है। ©परमानन्द भट्ट

दीपावली ©गुंजित जैन

 अंधकार यह दूर हो, उज्ज्वल हो हर राह।  मन के भीतर हो सदा, सुंदर ज्योति प्रवाह।।  दीपों से जगमग रहे, अंतर्मन का द्वार। सदा प्रज्ज्वलित हो धरा, सुखी रहे संसार।। नष्ट सभी के बैर हों, होगा मेल मिलाप। आई है दीपावली, दूर हुए संताप।। हिय से मंगल कामना, हो सुख शांति समीप। जीवन में हों आपके, खुशियों के नव-दीप।। घर-घर में हो सर्वदा, माँ लक्ष्मी का वास। शुभ हो यह दीपावली, गुंजित की है आस।। ©गुंजित जैन

गजल ©सौम्या शर्मा

 कहने को वो शख्स दीवाना लगता है, हमको तो ये जख्म पुराना लगता है! सोचा होगा तुमने भूल गए सब हम, हमको है अफसोस! जमाना लगता है! हाथ छुड़ाकर जाना है तुमको? जाओ, उल्टा-सीधा एक बहाना लगता है! जबसे मां ने छोड़ी है दुनिया मेरी! मुझको  तो बेकार जमाना लगता है! उसकी यादें, बातें उसकी ही देखो! लब पर मेरे एक फ़साना लगता है! मुझसे कुछ नाराज रहेगी ये महफ़िल! मुझको सच का साथ सुहाना लगता है! तुमको क्या बतलाएं क्या बीती हम पर! अब तो हर ग़म एक तराना लगता है        © सौम्या शर्मा

ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला

  वो जिससे दुआओं में,मन्नत में असर आया l गुमनाम सितारा था टूटा तो नज़र आया l जुगनू की टिम टिम सा बारिश की रिमझिम सा.... मायूस हुईं आँखें ,पलकों में उतर आया l यादों में शरारत का शोखी का कोई लम्हा.. इक रेख हंसी की ले होठों पे बिखर आया l तारों की टोली ले..माझी का कोई मंजर... जब जब नींदें रूठीं, सपने ले कर आया l माझी की किताबों के पन्ने ज़ब-ज़ब पलटे... धुंधला सा अक्स कोई हर्फों में उभर आया l  ©संजीव शुक्ला रिक्त

वो ©अंजलि

नमन, माँ शारदे  नमन, लेखनी  हर किसी का पहला अपना,सब जग विधाता है वो, प्रीत निभाए शिव सी, धर्म कृष्ण सा निभाता है वो। कहीं पहाड़, झील,झरने,कहीं ऊँची इमारतें विशाल जगमग  सितारों से हर गली कूचे को सजाता है वो। ज़्यादा बरसे बाढ़ ले आए, कम हो तो सूखा पड़ जाए ज़्यादा-कम में संयम दे ज़िंदगी जीना सिखाता है वो। हारे का बनता सहारा, भाग्य लिखे को बदल देता है, जो याद करे कोई दिल से बिगड़े काम बनाता है वो। कृष्ण बन कर्म का पाठ पढ़ाए, भक्ति का मर्म बताए, सिखाने सृष्टि को मर्यादा का पाठ राम बन आता है वो। ©अंजलि 

सपना ©लवी द्विवेदी

 घर में भीषण आग लग गई जो बुझने का नाम ही नहीं ले रही थी और उसमें ऊपर से इस गर्मी की मार.. धूप की भयंकर तपिश और उस अग्नि ने इतना भयंकर रूप ले लिया था कि मानो सब कुछ जलकर राख हो जाएगा..... सब इधर उधर भाग रहे थे.... चीखते चिल्लाते रोते सिहरते.... कई घंटे इसी मंजर में बीते.... फिर अचानक मेरी नजर आसमान की ओर पड़ी जैसे वो मुझे कह रहा हो कि कुछ देर रुको सब ठीक हो जाएगा..... मैंने उसकी एक न सुनी बस रोती रही सब जलता देख.... कुछ देर बाद अचानक से आसमान का पीला रंग सफेद होने लगा.. मैंने फिर ध्यान नहीं दिया बस घटनास्थल का मंजर देख ही रही थी कि कुछ धीरे धीरे हवाएं चलकर मेरे पास आ मेरे बहते पसीने को शीतलता देते हुए धीरे से कान में बोली...मत रो...... मैंने फिर भी ध्यान नहीं दिया.....बस एकटक देखती सिहरती जा रही थी.. धीरे धीरे आसमान का सफेद रंग पूरा काला हो गया.... हवाएं और तेज चलने लगी जैसे मुझे बहलाने की कोशिश कर रहीं हों...लेकिन मैं उस ओर ध्यान ही नहीं दे रही थी क्योंकि उन हवाओं की ये बेखयाली उस आग को और फैलने में मदद कर रहीं थी....... तभी अचानक बादल गड़गड़ा उठे..... जैसे उन्हें मेरा यह व्यवहार पसंद

जय सियाराम ©दीप्ति सिंह

 राम नाम रट रे मना, राम जगत आधार। जग में प्रभु के नाम की,महिमा अपरंपार ।। निर्मल मन से कीजिये, सुमिरन बारम्बार । राम करेंगे आपको,भव सागर से पार।। राम नाम औषधि बड़ी, कहता है संसार ।  पीड़ा मिट जाती सभी, उर आनंद अपार।। उर में राम बसें सदा,मुख से जपते नाम । मिल जाए संतसंग जो, गृह भी बनता धाम ।। पाप मिटे शत जन्म के, प्रभु हैं नाम अधीन । भक्त वही बलवान है, नाम रहे तल्लीन ।। ताप त्रिगुण सागर बड़ा, इसमें नौका राम । जग की आशा त्यागिये, हरि आएँगे काम ।। दीया के प्रभु साँवरे,राम कहो या श्याम ।   अंतर उजियारा करे, अंतिम है विश्राम ।। ©दीप्ति सिंह 'दीया'