गजल ©सौम्या शर्मा

 कहने को वो शख्स दीवाना लगता है,

हमको तो ये जख्म पुराना लगता है!

सोचा होगा तुमने भूल गए सब हम,

हमको है अफसोस! जमाना लगता है!

हाथ छुड़ाकर जाना है तुमको? जाओ,

उल्टा-सीधा एक बहाना लगता है!

जबसे मां ने छोड़ी है दुनिया मेरी!

मुझको  तो बेकार जमाना लगता है!

उसकी यादें, बातें उसकी ही देखो!

लब पर मेरे एक फ़साना लगता है!

मुझसे कुछ नाराज रहेगी ये महफ़िल!

मुझको सच का साथ सुहाना लगता है!

तुमको क्या बतलाएं क्या बीती हम पर!

अब तो हर ग़म एक तराना लगता है

       © सौम्या शर्मा

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