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मीत मेरे ©सरोज गुप्ता

 मीत मेरे मन के तुम प्रीत मेरे तुम हो हारे हुए जीवन में जीत मेरे तुम हो नेह बरसाऊँ सदा तुझपे इतराऊँ सदा तुम मेरी हो हमदम सबको बतलाऊँ सदा गीत तेरे गाऊँ संगीत मेरे तुम हो हारे हुए जीवन में जीत मेरे तुम हो मेरी नींदों में हो तुम तुम्हीं सपनों की रानी मेरी सासों में तुम्हीं तुम लहू की रवानी मेरे हर रिवाजों में रीत मेरे तुम हो हारे हुए जीवन में जीत मेरे तुम हो © सरोज गुप्ता

कुछ बातें ©शैव्या मिश्रा

चंद बातें कही नहीं जाती,  बिन कहे भी रही नहीं जाती l कोरे काग़ज़ पे ये लिखीं नज़्मे... हर किसी से पढ़ी नहीं जाती l रोज़अखबार देख लेते हैँ..  क्या करें तिश्नगी नहीं जाती l अब्र धरती पे बरस पड़ते हैँ..  दूरियाँ ज़ब सही नहीँ जाती l पंख टकरा के बिखर जाते हैँ  अब उड़ाने भरी नही जाती l                      ©शैव्या मिश्रा

मोहब्बत ©रेखा खन्ना

 खामोशियों से कुछ नहीं बदलेगा, कभी तो सिले हुए लबों को खोलना होगा आँखों का बोलना शायद काफी नहीं, इक बार सीने से लगना होगा।। इश्क घुलेगा दिल के भीतर तभी नस नस में बिजली बन कर  दौड़ेगा आगोश में भर कर इक बार तेरे दिल की धड़कनों की जुबां को समझना होगा।। फिजाओं में जो घुली खुश्बू है आज, ना जाने कितने फूलों का पहरा होगा बगिया के फूलों का तेरे रूखसार का गुलाबी रंग देख जायज़ रूठना होगा। रिमझिम रिमझिम फुहारों का सुहाना मौसम सफर पर निकला है तेरी मदमाती अदाओं को देख बूंदों को भी तेरे इश्क में बरसना होगा। मोहब्बत की कोशिश जो आंखों से जाहिर हो वो मैकदा होगा चाहतों को जो बांहों का घेरा मिले गर तो जायज़ आज बहकना होगा।। जिस राह भी चल पड़े हम वो रस्ता तेरे घर का ही होगा गर स्वीकार करो हर हाल में हमें तो डोली में लाज़िमी बैठना होगा।                 ©रेखा खन्ना

गीत - शागिर्द मुहब्बत का ©गुंजित जैन

कुछ भी न छुपाओ तुम, हर बात बताओ ना, शागिर्द मुहब्बत का, तुम प्रेम सिखाओ ना। अब रोज़ कहीं तुम में, महताब दिखे मुझको,  इन उठती निगाहों से, इक ख़्वाब दिखे मुझको, पर्दा ये हटाओ ना, अब चाँद दिखाओ ना। तुम साथ नहीं थे जो, तो चूर हुआ था मैं, उस रोज ज़रा खुदसे यूँ दूर हुआ था मैं, अब पास आ जाओ ना, दूरी ये मिटाओ ना। हर रोज़ दरीचे पर,  अब धूप नहीं आती, ये भोर की लाली भी अब गीत नहीं गाती, तुम तम को भगाओ ना, इक दीप जलाओ ना। तुम बांध लो अब मुझको, नादान सी कविता में, अब डूब रहा हूँ मैं, इस इश्क़ की सरिता में, तुम आज तो आओ ना, मुझको भी बचाओ ना। बेडौल हुआ गुंजित, आकार बनो आकर, नाकाम से जीवन में, संसार बनो आकर, मुझको अपनाओ ना, मनमीत बनाओ ना।      ©गुंजित जैन

ग़ज़ल ©रानी श्री

 गमों के मंज़रों के बीच खुशियों की रवानी है, यहाँ चढ़ती नहीं पहले कि ढल जाती जवानी है। भरेंगे ज़ख्म इस दिल के कयामत से कयामत तक, कयामत बीत जाती है,नहीं मिटती निशानी है। ज़माना ये किताबें अनगिनत है छाप के बैठा, मगर हमको नहीं मिलती हमारी जो कहानी है। रहो फ़िर पास या फ़िर दूर क्या ही फ़र्क पड़ता है,  मुहब्बत रीत ऐसी है,यहाँ पड़ती निभानी है। गजब कर के बदल जाती पलों में रुत मुहब्बत की,  बनी है जिस्म से लेकिन कही जाती रुहानी है। अमीरी या गरीबी में महज़ ये फ़र्क इतना है, किसी के आंख में मोती किसी के ढेर पानी है।  सही लगता मगर सब कुछ गलत है इस ज़माने में,  नज़र की हर खराबी में सही तू एक 'रानी' है। ©रानी श्री

नहीं आते! ©सौम्या शर्मा

 कैद करना तस्वीरों में वो सुहाने पल सभी! लौटकर फिर वो बीते जमाने नहीं आते!! दूर से ही खैरियत सबकी पूछ लेते हैं अक्सर! रिश्ते नये जमाने के आंख मिलाने नहीं आते!! छूट जाते हैं कभी जब सफर-ए-जिंदगी में! कांधे पर रखने हाथ वो दोस्त पुराने नहीं आते!! लाख कोशिशें कर लेना फिर बताना हमें यारों! क्यूं इश्क में कभी होश ठिकाने नहीं आते!! अंदर ही घुटते हैं मौत से पहले ही मर जाते हैं! वो लोग दिल के राज जिनको बताने नहीं आते!! हमसे मुहब्बत करना गर तो सच्ची सी कर लेना! आजमाइशों वाले हमको तो तराने नहीं आते!!! मात यूं भी खा गए हम रिश्तों की कशमकश में! हमको इल्जाम किसी पर भी लगाने नहीं आते!! दिल को इस कदर मेरे साफगोई की आदत है! हां या ना के बीच के कोई बहाने नहीं आते!! सहेजकर रखना उन अजीज यादों को दोस्त! लौटकर वो बचपन वाले दिन सुहाने नहीं आते!! आज के दौर में रिश्तों की आजमाइश मत करना! दूर हो जाते हैं लोग, गलतफहमी मिटाने नहीं आते!!                                  ©सौम्या शर्मा

छलिया ©नवल किशोर सिंह

 नेह नटखट डोर छलिया। तोड़ता चितचोर छलिया। नेत्र मुकुलित जागरण से। छाद तन श्वेतावरण से। लेप पीड़ा बोध आनन। भीत बेला बीच कानन। बेकली घनघोर छलिया। भाग्य छल को योजती है। मीत मन को खोजती है। तरु तना कादम्ब बनके। पास था आलम्ब बनके। छल गया मन मोर छलिया। डाल टूटा भरभराकर। पाँव में खटका लगाकर। चार पथ से सामना है। एक लेकिन थामना है। पग धरूँ किस ओर छलिया। -©नवल किशोर सिंह

युवा! © तुषार पाठक

 उनकी बातों को नही समझा जाता, न ही उनकी बात को महत्व दिया जाता है। उनको अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण निर्णय खुद नही लेने दिए जाते है। बस एक ही बार में उनको उनकी औकात दिखा दी जाती है, न ही उनके प्रतिभा को दिखाने का मौका दिया जाता है, उनकी असफलता पर उनका मनोबल गिरा दिया जाता है, उनको मन से हारने के लिए मज़बूर  किया जाता है। और उनकी किसी सफलता को  भाग्य से जोड़ दिया जाता है। उनको हर बात पर डाट दिया जाता है,वह पिसते रहते है, रिश्तेदारो से तो कभी  सरकारों से।  उनको हर किसी बात के लिए किसी न किसी चीज़ से डरा दिया जाता है। उनको हमेशा किसी और की गलती के लिए भी डाट दिया जाता है। उनकी  चुप्पी को उनकी कमज़ोरी समझा जाता है, उनके  लगतार प्रयासों को असफलता समझा जाता है। उनको रोने भी ठीक से नही दिया जाता , तुम लड़के हो ,तुमको आँसू  बहाने का हक नही। उनको उनके दोस्तों  से दूर किया जाता है, तोह उनको किसी लड़की से प्यार भी नही करने दिया जाता, धर्म-जाति  का ज्ञान दे दिया जाता है, उनकी काबिलियत को दहेज से तोला जाता है। वही उनका पेट तानो से भरा जाता है। उनके अंदर के बच्चे को वहीं  उसके अंदर मार दिया जाता है। उनकी चे

गीत-गुल-हज़ारा ©संजीव शुक्ला

 आसमाँ का सितारा लिखूँ,या कोई गुल-हज़ारा लिखूँ l नूर कैसे भरूँ हर्फ़ में,....... अक़्स कैसे तुम्हारा लिखूँ l झील में एक खिलता कँवल, मरमरी रौशनी का महल l मखमली वर्क पे सुर्ख़रू , एक शादाब महकी ग़ज़ल l खुश्बुओं का इशारा लिखूँ, जन्नतों का नज़ारा लिखूँ l हाए झुकती हया से नज़र, या चुराता बदन गुलमुहर l  चंद सिंदूर की सुर्खियाँ, सुर्ख रुख़्सार पे दो भँवर l इक सुलगता शरारा लिखूँ,महवशी माह-ए-पारा लिखूँ l कैसे आए नज़र को यकीं, कोई होता है इतना हसीं l यूँ मुकम्मल वफ़ा हुस्न का, अक़्स होगा जहाँ में कहीं l इकअदा का इज़ारा लिखूँ,किस तरह हुस्न सारा लिखूँ l नूर कैसे भरूँ हर्फ़ में,...... अक़्स कैसे तुम्हारा लिखूँ l                         ©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'

महर्षि पतंजलि ©अनिता सुधीर

 पावन भू पर जन्म लिए,मुनि भारत गौरव गान लिखे। दर्शन योग पतंजलि का,ऋषि धातु रसायन मान लिखे।। योग विधान प्रसिद्ध हुआ,परिभाषित सूत्र महान लिखे।। भाष्य विवेचन सार लिखे,वह संस्कृति का अवदान लिखे।। अष्ट प्रकार सधे तन ये,छह दर्शन में उत्थान लिखे। औषधि वैद्य पितामह थे,तन साधन का तप ज्ञान लिखे।। जो उपचार किए मन का,मन चंचल का वह ध्यान लिखे। रोग विकार मिटा जग का,वह भारत की  पहचान लिखे।।                   अनिता सुधीर आख्या

कल्पना ©विराज प्रकाश श्रीवास्तव

 महज कल्पना थी मेरी या इत्तेफाक था , मसला मोहब्बत का था जो मेरे साथ था ! तस्वीर हाथों में ले के खोया रहता था रातों में, ये उदासी मेरे दिल की थी या मौसम खराब था!  मैं उलझा रहता था उसे सोचते हुए , हां ये सपना अधूरा सही पर मेरे साथ था !  काफी मशवरा भी लिखा मेरे नाम पे उसने , मोहब्बत का रास्ता भी मुझसे अनजान था!  कबूल कर के मोहब्बत को मैं कहां जाता , वो मुझे मिल जाए ये किस्सा अब कुछ आम था !  मैं कल्पना करता रहा उसके आने की , खामोशियां ने दम तोड़ा ,मेरा लहजा खराब था !  मैं महफूज हूं अब जो वो मेरे साथ नहीं , दिल से दिल का रिश्ता था,जो अब सिर्फ मेरे साथ था !                             ©  विराज प्रकाश श्रीवास्तव

क़ायम रहे ©परमानन्द भट्ट

 हाथ यूँ तो हाथ में क़ायम रहे फ़ासले अहसास में क़ायम रहे वो भी हमको सोचते आजकल जो हमारी साँस में क़ायम रहे जेब़ खाली ही रही बेशक मगर चंद सिक्के आस में क़ायम  रहे बात निकली जब कभी भी इश्क़ की आप हर उस बात में क़ायम रहे चाँद सूरज थक गये सारे यहाँ पर अँधेरे रात में क़ायम रहे थी हवा विपरीत आँधी भी चली हम जड़ों के साथ में क़ायम रहे वो 'परम' ख़ुश रंग  मौसम से परे अश्क़  की बरसात में क़ायम  रहे              © परमानन्द भट्ट

गीत- हसरतें ©प्रशान्त

 वो सामने खड़ी थी , गेसू सुलझ रहे थे l वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll इक नाज़नीन मुझसे नज़रें लड़ा रही थी l शबनम निगाह उसकी, गरमी बढ़ा रही थी ll वो भी झुलस रही थी, हम भी झुलस रहे थे l वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll दो-तीन रोज़ पहले , आई थी वो‌ शहर में l पहले-पहल दिखा था , इक चाँद दोपहर में ll मौसम बदल रहा था , बादल गरज़ रहे थे l वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll छत पर मुहब्बतों की बरसात हो रही थी l लब तो सिले हुए थे , पर बात हो रही थी ll वो भी समझ रही थी , हम भी समझ रहे थे l वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll दो अजनबी दिलों में ज़ज़्बात पल रहे थे l दुनिया जहान वाले सब हाथ मल रहे थे ll हर दिन मुहब्बतों के अरमान सज रहे थे l वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll इक शाम को अचानक, फिर हो गयी क़यामत l वापस वो जा रही थी ,  हाए रे मेरी क़िस्मत ll वो भी तरस रही थी , हम भी तरस रहे थे  ll वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll                               ©प्रशान्त

टूट ©रमन यादव

 टुकड़ों में मैं बिखर रहा हूँ, टूट रहा हूँ धीरे-धीरे, लाख मिलाऊं तान दिलों की, चूक रहा हूँ धीरे-धीरे। ख़्वाब प्रेम का ख़्वाब हसीँ है, डगर प्रेम की मगर कठिन है, बेशक कुंड है प्रेम सुधा का, जलन प्रेम की मगर कठिन है। मुझ से जब जब वो रूठें, रोने का मन करता है, आँसू से कर तकिया गीला, सोने का मन करता है। मेरे हिस्से की सब खुशियां, नाम उन्हीं के हो जाएं, टकराते हैं जो जश्न में, जाम उन्हीं के हो जाएं। हाथ जोड़ कर विनती है कि, सम्मान ताक पर मत रखना, हर खता पर तुम दंड देना, मान ताक पर मत रखना।            ©  रमन यादव

आपदा-काल © सरोज गुप्ता

 दूर से रिश्ते निभाओ, कीमती है जिंदगी ।  पास सबके तुम न जाओ, कीमती है जिंदगी ।।  जब जरूरी काम ना हो, घर से बाहर मत रहो ।  मास्क को मुँह पर लगाओ, कीमती है जिंदगी ।।  भीड़ में जाओगे जो तुम, लाओगे घर आपदा ।  मौत को यूँ मत बुलाओ, कीमती है जिंदगी ।।  उन सभी के दिल से पूछो, अपनों को जो खो दिए ।  गल्तियों से बाज आओ, कीमती है जिंदगी ।।  आपदा का काल है ये, सावधानी से रहो ।  दोष मत सबके गिनाओ, कीमती है जिंदगी ।।                            ©  सरोज गुप्ता

असलियत ©आशीष हरीराम नेमा

 न दरबारी वजीरों से न ही छोटे सिपाही से । फकीरों के जुड़े है तार सीधे बादशाही से ।। बहा के अश्क़ हमदर्दी जता देना दिखावा है , असल मतलब है' इनको सिर्फ अपनी वाहवाही से।।   खुदा की रहमतों वाली अदालत है बड़ी सबसे , जहाँ पर फैसले होते नहीं झूठी गवाही से ।। अगर यूँ ही चली हर बार मनमर्जी तुम्हारी ही , पड़ेगा फर्क क्या बोलो मिरी हामी मनाही से ।। चलें जो तान कर सीना सफेदी है लिबासों में , सियासतदार वे सब खौफ खाते है सियाही से ।। अभी के शोर से दुगुनी फकत खामोशियाँ होंगी , नया आगाज जब होगा कयामत की तबाही से ।। बिना दीदार के जो इश्क़ को बेरंग कहते हैं , वे' शायद वास्ता रखते नहीं इश्क़ेइलाही से ।।                                    © आशीष हरीराम नेमा

प्रेम ©रानी श्री

 टहलते टहलते अनायास ही तुम्हारा सवाल आया जिसका जवाब मैं कभी दे नहीं सकी और इससे पहले कि जवाब दे पाती तुम ख़ुद ही एक सवाल बनकर रह गये। इस जवाब को पढ़ने के लिये तो तुम नहीं हो, फ़िर भी लिख रहीं हूँ, भूले बिसरे मिल जाए तो पढ़ लेना।  क्या तुम्हें पता है कि वास्तव में प्रेम क्या है? यही था ना तुम्हारा सवाल? तो सुनों, प्रेम वो थोड़ी है जो एक पल में हो गया और दूसरे ही पल गायब। प्रेम तो वो है जो तुम्हारे और हमारे ना होने के बाद भी रहे। प्रेम आपसी समझ से बनता है। प्रेम को कोई भी लिख नहीं सकता उसे तो केवल अंतर्मन से महसूस कर सकते हैं। कभी भी दो प्रेमियों जैसा प्रेम नहीं होना चाहिए क्योंकि उसमें यदि शक के बीज जम गये तो वो प्रेम को बर्बाद कर देगा। प्रेम यदि होना चाहिए तो एक मां और एक बच्चे की तरह होना चाहिए, निश्छल, निस्वार्थ भाव वाला जहाँ कोई भी शक जगह नहीं ले सकता।  प्रेम एक ऐसा बंधन है जिसमें कोई बंधन नहीं होता लेकिन ये सारे बंधनों से परे है। कुछ लोग अपने प्रेम के सही होने के दावे करते हैं, पर मैं नहीं मानती , जिसमें दावे और दिखावे होते वो प्रेम तो कतई नहीं। प्रेम थोड़ा त्याग है, थोड़ा समर्पण,

कहीं मोहब्बत तो नहीं हो गई ©रेखा खन्ना

 अच्छा सुनो! सुनो ना! कुछ पुछूंँ तुम से हांँ बोलो ... क्या जानना चाहती हो? अच्छा एक बात तो बताओ... मैं और तुम तो सिर्फ दोस्त हैं ना, कुछ समय पहले ही मिले हैं ना, लेकिन दोस्ती ज़रा जल्दी गहरी हो गई हमारी। हाँ सही कह रही हो तुम ... मैं भी यही सोचता हूँ कि कितनी जल्दी हम दोनों कितने अच्छे दोस्त बन गए हैं कि अपनी हर बात बेझिझक एक दूसरे को कह देते हैं। हाँ सही कहा पर ये भी तो सच है ना कि हम रोजाना बात नहीं करते हैं। कभी कभी तो महीनों बात नहीं होती हमारी।  हाँ ये भी सही कह रही हो तुम। अच्छा ये बताओ कि आज तक कभी गले लगाया है मुझे? अरे ये ख्याल कैसे आया तुम्हारे दिमाग में, वाकई में हमने आजतक एक दूसरे को गले तो लगाया ही नहीं। अच्छा फिर सपने में क्यूँ गले लगा लेते हो बात बात पर। हकीकत में तो कभी ऐसा नहीं करते हो। डरते हो क्या मुझसे। हुंँहहहहहह  डर और तुम से .... शक्ल देखी है अपनी क्यूंँ, क्या खराबी है इस शक्ल में, इसे देख कर ही दोस्ती की थी ना। अच्छा अच्छा बात ना घुमाओं और सच सच बताओ आखिर माजरा क्या है .... तुम ने ही अपने सपने सुनाएँ ना मुझे .... हाँ ... सुनाएँ तो क्या हुआ। मैंने ये तो नहीं कहा

मित्रता ©गुंजित जैन

 मित्रता, भाव का, भव्य भंडार है,  चित्त की चित्त से, रम्य है भावना। लेखकों में हुआ, शब्द संचार है, मित्रता ईश है, मित्रता साधना।। हर्ष-उल्लास में, नेह आभास में, सर्वदा मित्र है, शूल में, त्रास में। अग्नि या नीर हो, कष्ट हो पीर हो, मित्र हो साथ तो, दूर हो यातना।।   संकटों को सभी, मित्रता ही हरे, मार्ग से, लक्ष्य से, दूर काँटें करे, मुस्कराता रहे, नम्र वाणी कहे, मंदिरों की लगे, दिव्य आराधना।। श्वास का प्राण का, मित्र आधार है, शुद्ध भावों भरा, एक संसार है। अंत ना हो कभी, पावनी मित्रता, साथ हो सर्वदा, मैं करूँ कामना।। ©गुंजित जैन

सैनिक ©अनिता सुधीर

सोच रही शब्दों की सीमा,कैसे लिख दूँ सैनिक आज। कर्तव्यों की वेदी पर जो,पहने हैं काँटों का ताज।। वीरों की धरती है भारत,थर थर काँपे इनसे काल। संकट के जब बादल छाए, रक्षा करते माँ के लाल।। रात जगी पहरेदारी में, देख रही है सोया देश। मित्र बना कर बारूदों को,वीर सजाते फिर परिवेश।। रिपु को धूल चटाना हो या,नागरिकों का रखना ध्यान। विपदा कैसी भी आ जाए,हँस कर देते हैं बलिदान।। हिमकण की ओढ़ें चादर या ,तपती बालू का शृंगार। देश बना जब इनका प्रियतम, नित्य ध्वजा से है मनुहार।। भू रज मस्तक की शोभा है,शौर्य समर्पण है पहचान। फौलादी तन मन रख सैनिक ,करते कितने कार्य महान।।                                    ©अनिता सुधीर

मधुमास ©संजीव शुक्ला

भोर के उज़ारन में, सांझन सकारन में,  रात्रि चंद्र तारन में, आलस का भास है l गाँव गैल द्वारन में,अँगना चौबारन में,  फरका ओसारन में,छा रही  हुलास है l उर्वरा कछारन में, ऊसर पठारन में,  रूखन पहारन में, बिथरो उजास है l पोखर पखारन में, खेतन की पारन में,  नदिया की धारन में, मन्मथ रस रास है l अभिलाषी सारन में,कोकिला सितारन में,  प्रेम की पुकारन में, प्रीतम की आस है l वाटिका विहारन में ,फूल की कतारन में,  अलि की गुंजारन में, मोहिनी सुवास है l श्यामली निहारन में,अल्हड़ विचारन में,  तरुणाई भारन में, प्रेम की मिठास  है l काजर की धारन में, नैन की कटारन में,  मत्त मोद कारन में, आयो मधुमास है l       ©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'

मुश्किल है ©सौम्या शर्मा

 टूटे दिल की पीर बताना मुश्किल है! हम तो हैं आसान जमाना मुश्किल है!!  जिस रस्ते ने गहरे जख्म दिए हमको! उस रस्ते फिर वापस जाना मुश्किल है!! मेरा तो बस एक ठिकाना दिल उनका! दूजा कोई मकां बनाना मुश्किल है!! किसने कितने घाव दिए   नादां  दिल को! अब तो ये अनुमान लगाना मुश्किल है!! हमको अब आवाज लगाना मत,देखो! आज हमारा लौट के आना मुश्किल है!! आज हमारा दिल थोड़ा मुस्काया है! आज हमारा अश्क बहाना मुश्किल है!!                       ©सौम्या शर्मा

अब सूरज निकलना चाहिए © रजनीश सोनी

 बढ़ गया है धुंध, अब-           सूरज निकलना चाहिए. जिस तरह भी हो सके,               रौशन  सबेरा  चाहिए..  ********* आँधियों ने उडा़ दीं,               (1)  बूँदें जो बादल में रहीं. बादलों का दोष क्या,  खेती जो सूखी रह गयी. चाहिए  वर्षा  अगर,  झोंका ये रुकना चाहिए. पवन के अभिमान का भी,  रुख बदलना चाहिये. बढ़ गया है धुंध, अब,           सूरज निकलना चाहिये, जिस तरह भी हो सके,            रौशन   सबेरा   चाहिये..  ******** ले  के  कुछ  अरमान,             (2)  बादल, बरसते हैं खेत पर.  पर, नहीं पानी ठहरता,  जो  ये  बरसें  रेत  पर.  बादलों का श्रम हो सार्थक,  खेत  ऐसा  चाहिए. उपज बढ़ती ही बढ़े,  कुछ, नेत ऐसा चाहिए. बढ़ गया है धुंध, अब,          सूरज निकलना चाहिये..  जिस तरह भी हो सके,            रौशन   सबेरा   चाहिये.. ********* कहते, गरजते हैं जो बादल,     (3)  वो  बरसते  हैं  नहीं. आँधियाँ रुकती नहीं,  बादल ठहरते भी नहीं. पवन!  झंझा रोंक ले,  परिचय तो करना चाहिए. चाहिए  जलधार  तो,  आदर भी करना चाहिए. बढ़ गया है धुंध, अब,           सूरज निकलना चाहिये. जिस तरह भी हो सके,            रौशन   सबेरा 

धुंध (गीतिका) ©नवल किशोर सिंह

  धुंध आँखों से हटाने कौन आयेगा। पंथ को उज्ज्वल बनाने कौन आयेगा। घात के खड्डे भरे हैं पंथ प्रांगण में, दीप ले खड्डे बताने कौन आयेगा। चाँद खंडित पूर्णिमा में घोर संशय है, राहु को नभ से भगाने कौन आयेगा। स्वप्न सिरहाने सहमते रात सोयी सी, नींद से उसको जगाने कौन आयेगा। भेंट चढ़ते दीमकों की ग्रन्थ के पन्ने, धूप अक्षर को दिखाने कौन आयेगा। -©नवल किशोर सिंह

याद तो आई ©दीप्ति सिंह

 चलो तुमको बहाने से हमारी याद तो आई लबों पर नाम आने से हमारी याद तो आई नज़र भर देखते थे तुम तो हलचल सी मचाते थे सुकूँ दिल का चुराने से हमारी याद तो आई हमारी मुस्कुराहट से तुम्हें कितनी मुहब्बत थी किसी के मुस्कुराने से हमारी याद तो आई मुहब्बत का यकीं तो है ये दिल फिर भी परेशाँ है  ये उल्फत आज़माने से हमारी याद तो आई क़दर तुमको हमारे प्यार की होती नहीं शायद  हमारे दूर जाने से हमारी याद तो आई             ©दीप्ति सिंह "दीया"

ग़ज़ल- आशियाँ ©प्रशांत

 मिटाकर चल पड़ेंगे एक दिन अपने निशाँ सारे l फ़कीरी के यकीं सारे , अमीरी के गुमाँ सारे ll किसी से क्या करें शिकवे,गिले-नाले सिवा अपने... दिलों को जीतकर हारे हमीं ने इम्तिहाँ सारे ll मुकद्दर ने हमें , हमने मुकद्दर आजमाया था... बरसने थे हमारी ही जमीं पर आसमाँ सारे ll मेरे मौला! दुआएंँ ला-मकांँ दिल की करो पूरी... सनम कर दे इसी के नाम अपने आशियाँ सारे ll अभी अख़बार को पढ़कर बड़ा ताज़्जुब हुआ हमको.. चमक हासिल शहर ने की जलाकर के मकाँ सारे ll कई रौज़न दर-ओ-दीवार पर हमने बना डाले... 'ग़ज़ल' हमसे खफ़ा हैं अब हमारे राज़दाँ सारे ll ~ प्रशांत 'ग़ज़ल'

मुझे दे दो ©परमानन्द भट्ट

तुम अपनी आँख से बहता, सनम पानी मुझे दे दो जो दिल को सालती हो वो परेशानी मुझे दे दो ख़ुदा मैं मांगता तुमसे,नहीं दौलत जहां भर की तेरे दरबार की दाता, महरबानी मुझे दे दो खु़शी उनको  मिले सारी, दुआऐं हम ये करते हैं ग़मों की दर्द की मौला,ये रज़धानी मुझे दे दो कबीरा कह गये जग में,खरी जो बात  कविता में ग़ज़ल में शब्द के सच्चे, वही मानी मुझे दे दो  बिछाने फूल है मुझको, हसीं रंगीन राहों में तुम अपनी राह की यारा, निगहबानी मुझे दे दो सयाने लोग करते हैं गगन के पार की की बातें हँसी बच्चों सी देकर के वो नादानी मुझे दे दो 'परम' की चाह बस इतनी, रहो तुम साथ ख़्वाबों में कभी इक रात भर तुम दिल की सुल्तानी मुझे दे दो ।             ©परमानन्द भट्ट

बाहें © विपिन बहार

 तुम्हारें बिन कहूँ कैसे अकेली सी हुई बाहें । भटक ऐसी हुई हैं अब पहेली सी हुई बाहें ।। कहूँ क्या मैं कहानी इन तड़पते करवटों की सुन। कटा हैं ये वियोगी मन मचलते पनघटों की सुन ।। कभी भी याद करता हूँ तराने चाहतों के मैं । मुझें तब याद आता जब सहेली सी हुई बाहें ।। तुम्हारे बिन कहूँ कैसे अकेली सी हुई बाहें.. भटक ऐसी हुई हैं अब पहेली सी हुई बाहें.. नही जाना अभी से यार भोली सी डगर को तू । मुझे सब यार कहते हैं भुला दे उस शहर को तू । । कहा मैं भूल सकता हूँ भला मोहक छटाओं को । अभी भी कैद हैं दिल में नवेली सी हुई बाहें ।। तुम्हारे बिन कहूँ कैसे अकेली सी हुई बाहें ... भटक ऐसी हुई हैं अब पहेली सी हुई बाहें ... सितारे ये फ़लक के आज मुझसे बात करते हैं । अभी यूँ साथ ही मेरे सनम वो रात करते हैं ।। रहा में सोचता ये बैठ कर यूँ रात भर ऐसे । सितारों में ,हवाओ में ,हवेली सी हुई बाहें ।। तुम्हारे बिन कहूँ कैसे अकेली सी हुई बाहें ... भटक ऐसी हुई हैं अब पहेली सी हुई बाहें...                           © विपिन"बहार"         

ग़ज़ल ©सरोज गुप्ता

 कमर में खोंस कर पल्लू लगाए होंठ लाली है ।  सुकूँ मेरे  घराने की  मेरी घरबार  वाली है ।।  नजर में शोखियाँ रहती लटकती कान बाली है ।  मुझे जो देख के चहके मेरी प्यारी वो साली है ।।  अमां साला  मेरा हीरो  पढ़ाई में जरा ज़ीरो । घिरा रहता वो यारों से जरा सा वो मवाली है ।।  मियाँ ऐसे नहीं पीयो ये प्याला मय न बख्शेगा ।  दिखे रंगीन जो बोतल जो पी लो तो बवाली है ।।  लिखें हम गीत या कविता गज़ल या छंद दोहे भी ।  सभी हमको  सुकूँ देते  ख़याली या  कवाली है ।।  हमारे शादियों में जो  खिलाते दूल्हे को खिचड़ी ।  सुनाते  खूब जमकर के शगुन में यार  गाली है ।।               @सरोज गुप्ता