ग़ज़ल ©सरोज गुप्ता
कमर में खोंस कर पल्लू लगाए होंठ लाली है ।
सुकूँ मेरे घराने की मेरी घरबार वाली है ।।
नजर में शोखियाँ रहती लटकती कान बाली है ।
मुझे जो देख के चहके मेरी प्यारी वो साली है ।।
अमां साला मेरा हीरो पढ़ाई में जरा ज़ीरो ।
घिरा रहता वो यारों से जरा सा वो मवाली है ।।
मियाँ ऐसे नहीं पीयो ये प्याला मय न बख्शेगा ।
दिखे रंगीन जो बोतल जो पी लो तो बवाली है ।।
लिखें हम गीत या कविता गज़ल या छंद दोहे भी ।
सभी हमको सुकूँ देते ख़याली या कवाली है ।।
हमारे शादियों में जो खिलाते दूल्हे को खिचड़ी ।
सुनाते खूब जमकर के शगुन में यार गाली है ।।
@सरोज गुप्ता
Umda gazal ma'am 😍👌👌
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार तुषार🙏🙏 💐💐
हटाएंबढ़िया ग़जल मैम 👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आशीष जी 🙏🙏💐💐
हटाएंWaah... Sahi h Respected Saroj ji...😀🙏👍
जवाब देंहटाएंThank you so much dear madhu ji 🙏🙏💐💐
हटाएंThank you so much dear gunjit 🙏🙏💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी गज़ल 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंआभार आपका डियर 🙏🙏💐💐
हटाएंबहुत शानदार वाह
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका 🙏🙏💐💐💐
हटाएंBht hi bdhiya lines h 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका 🙏🙏🙏💐💐💐
हटाएंबहुत सुंदर 👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया निशा जी 🙏🙏🙏💐💐💐
हटाएंबहुत शुक्रिया आपका भाई जी 🙏🙏🙏💐💐💐
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