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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सबकी होली एक जैसे नही होती ©तुषार पाठक

 होली ख़ुशी उल्लास का त्यौहार है। पर कितने ही लोगो के लिए यह एक त्यौहार का दिन नही बल्कि एक आम दिन की तरह होता है। होलिका दहन का दिन था, अभिराम को यह ज्ञात नही था कि, आज होलिका दहन है, उसे यह बात देर रात 10 बजे किसीके व्हाट्सअप  पर स्टेटस देखकर पता चली । तो वह फ्लैट पर दोस्तों के साथ कल के लिए योजना बनाने लगा। बाद में पता चला की कल शायद वह व्यस्त है। कल सुबह होते ही बिना कुछ खाए  वह कॉलेज के लिए निकल गया l क्लास  ख़त्म होते 12 बज गया। वह घर आया आते हुए उसने अपने लिए कुछ फल ले लिये क्योंकि आज उसके वहाँ खाना बनाने वाली छुट्टी  पर थी । 1 बजे उसे ईमेल आता है कि आपका आज ऑनलाइन इंटरव्यू 4 बजे है , घर आते है वह कुछ फल खाता है, और उसके बाद वह कॉल पर सबको विश करता है, वह जिसको जिसको फ़ोन करता है ,  कोई भी उससे अच्छे से बात नही करते, शायद इसमें गलती किसीकी भी नही सभी अपने कार्यो में व्यस्त है, या वह अपना दिन,  घर पर अच्छे से मना रहे है, यही सोच कर वह अपने मन को दिलासा देता है। उसके बाद वह इंटरव्यू  के लिए तैयार होने लगता है । इंटरव्यू ख़तम होते 4:45 हो जाता है। जैसे ही मोबाइल खोलता है सभी लोगो को स्

ज़रूरी था ©सुचिता

 गुले- रूखसार खिलना भी ज़रूरी था ।। कड़ी थी धूप जलना भी ज़रूरी था ।। किनारों पे फ़क़त चलते भी तो कब तक .. समुन्दर में उतरना भी ज़रूरी था ।। फ़सानो के सराबों में रहें उलझे .. कोई मकतूब लिखना भी ज़रूरी था ।। तुझे यूँ याद करके थक गया है दिल.. कभी तो तेरा मिलना भी ज़रूरी था ।। ख़ुदाओं की निहायत बस्तियों में इन... कोई इंसान दिखना भी ज़रूरी था ।। ग़मों का बोझ कुछ मिन्हा हो जाता,इक ... ग़ज़ल शादाब कहना भी ज़रूरी था ।।                                 @succhiii

चाहत © रेखा खन्ना

 जो टूटा हुआ है अंदर से उसे ये समझ कर मोहब्बत मत जताओ कि आप की मोहब्बत से ही जुड़ सकेगा वो। उस से ऐसे मोहब्बत करो कि उसे ये महसूस हो कि वो कभी टूटा ही नहीं था बस मोहब्बत की तलाश में था। मोहब्बत जताने के लिए तो दो बोल ही काफी होते हैं। प्यार से गले लगा कर कह देना कि " मैं हूँ ना साथ फिर किस बात की चिंता है " । बस इतना ही काफी है। ये भी नहीं कहना तो प्यार से गले लगा कर माथा चूम लेना ही दिल को ये दिलासा दे जाता है कि कोई तो है जो दिल से ख्याल रखता है।  पर कभी कभी ऐसा कोई नहीं होता है जो ये हक जता सकते। जिंदगी में कभी कभी लोग साथ तो होते हैं पर फिर भी इक अकेलापन हमेशा दिल के अंदर साँसे ले रहा होता है और वो धीरे धीरे ना जाने कब एक आदत का रूप ले लेता है कि जब कोई जिंदगी में शामिल भी होता है तो उसे पूरी तरह स्वीकार करने में बहुत वक्त लग जाता है।  **** चाहो मुझे ऐसे कि मोहब्बत को दिल ना तरसे गले लगाओ ऐसे कि दिल से दिल मिल जाए। ऐसे ना चाहो की दिल एहसान तले दबता लगे ऐसे चाहो कि दिल, नित नई उमंगों से खिल जाए। ऐसे चाहो कि पहली बार दिल छुआ हो किसी ने गर ना मिलते तो दिल, ताउम्र, अनछुआ ही र

होली उल्लाला छन्द में ©अनिता सुधीर

 उल्लाला उल्लाल है,फागुन रक्तिम गाल है। कहीं लाज से लाल है,कहीं बाल की खाल है।। भंग चढ़ा कर आज से,छाया क्या उल्लास है। संगी साथी मग्न हैं,रंग भरा परिहास है।। पिचकारी हो प्रेम की,जीवन होली रंग हो। दहन कष्ट का हो सभी,नहीं रंग में भंग हो।। रूप धरे विश्वास का,आया अब प्रह्लाद है। अंत बुराई का सदा,यही गूँजता नाद है ।। होली की इस अग्नि में,राग द्वेष सब भस्म हो। कर्म यज्ञ हो जीवनी,जीवन की ये रस्म हो।                      @अनिता सुधीर आख्या

इंतज़ार ©अभी मिश्रा

  उस नील गगन के अश्रु  को,  मेरा  मस्तक  छू   जाने   दो, फिर  गूँज  उठेंगे  गीत  यहाँ, बरसात का मौसम आने दो। फिर   नई   लताएँ    झूलेंगी,  मरघट  सा  पतझड़  भूलेंगी, बस वक्त को मरहम लाने दो,  बरसात का मौसम  आने दो। फिर से छुप कर के  रो लूँगा,  फिर तुमको होगी खबर नहीं, उस गरज में आह  छुपाने दो, बरसात का मौसम  आने दो। उसमें  ना  मेरा   हित  होगा,  मन भी मेरा विचलित  होगा, चेहरों के रंग  धुल  जाने  दो,  बरसात का मौसम आने दो। फिर जलमय  हर  बस्ती  होगी, और जान भी फिर सस्ती होगी, इस बाँध को बस खुल जाने दो,  बरसात  का  मौसम  आने  दो। मेंढक जब  सब  नाहर  होंगे, और नाग  सभी  बाहर  होंगे, फिर आत्मधैर्य आजमाने दो,  बरसात का मौसम आने दो।                          ©abhi_mishra_

होली का चकल्लस ©नवल किशोर सिंह

 खनक रही खुशियाँ झोली में। भरपूर चकल्लस होली में। हरा, गुलाबी अरु नारंगी। भींगी भौजी हाँ सतरंगी। देवे चुन चुन कर वो गाली। झूम-झूम मस्तों की ताली। समवेत हास हमजोली में। भरपूर चकल्लस होली में। खड़ी झरोखे नार नवेली। चंचल चितवन है अलबेली। होंठ गुलाबी मुस्की प्यारी। नैनों में मद की पिचकारी। बौछार रंग की बोली में। भरपूर चकल्लस होली में। अंग उत्तंग भर अंगराई। कजरारी मटकी बलखाई। मन मतंग लख के मतवाली। वो पतंग भैया की साली। ललकार मची है टोली में। भरपूर चकल्लस होली में। उड़ती सी सर्र-सर्र धावे। छुप-छुप रंग-गंग बरसावे। गोरे कोरे गाल किताबी। कैसे मल दूँ रंग गुलाबी। मन हिलकोरे हिंडोली में। भरपूर चकल्लस होली में। बहुत जतन करके पछताया। चतुर मोहिनी पकड़ न पाया। समझ रहा था जिसको भोली। वो चपल बंदूक की गोली। उलझ गया आँख मिचौली में। भरपूर चकल्लस होली में। रंग बिरंगी लथपथ साड़ी। पास फटक आई इक नारी। मस्त मदिर मुस्कान सजाकर। बौराया मन संगत पाकर। भुज धरके चली ठिठोली में। भरपूर चकल्लस होली में। हुड़दंगों की इस बस्ती में। मन झूम रहा था मस्ती में। तब उसने ही झकझोर दिया। सुंदर सपने को तोड़ दिया। सेहरा बिना ही डोली में।

होली ©रानी श्री

 देखो रे सक्खी 'आकांक्षा' होली आई रे, संग में रंग अऊर 'नवल सर' के मन में हुरदंग भी लाई रे। सर पर चढ़, हो 'विराज',होली का चस्का मन में 'गोपाल जी' के भी मस्ती छाई रे। निकले साथ 'संजीव सर' भी, और निकले 'विपिन बहार', साथ हो लिये देखो 'पाठक जी तुषार', देखो देखो 'अभि मिश्रा',हाथ लिये हैं रंग, लगा ना दे कहीं बचो 'मनोज परमार'। 'अतुल महपा' भी कूद पड़े, कूदे 'आलोक कुमार' 'निर्मोही' आए, सब मोह छोड़ छाड़, 'प्रशांत जी' आए ले कर 'ग़ज़ल' 'आनंद जी' आनंद से बन बैठे 'अ'सरदार'। 'रजनीश' सहित 'शशि' की सवारी, 'मानव' भी आए चढ़कर बैलगाड़ी, 'नेहल जैन' जी संभलो री आए दो 'किशोर' दोनों के हाथ पिचकारी। 'रूपांशु' का रूप देखो भैया जी मस्त रंगीन हो गए हमारे 'रमैया' जी नाच नचाएं 'शशिकान्त' सर 'पीएन भट्ट' सर बने गवैया जी। पूछे 'अंजलि' दीदी  'सुचिता' मिठाई खा गया कौन ? देखो अपना छोटा 'गुंजित'  हो