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नव संवत्सर ©सूर्यम मिश्र जिसके मंगलमय होने का, साक्षी प्रत्यक्ष दिवाकर है। जिसकी शुभता का सत्प्रतीक, यह धरा अमर, यह अंबर है।। हम ही सदैव से श्रेष्ठ रहे, यह सम्वत्सर इसका प्रमाण। सप्तपञ्चाशत् संवत आगे, हो किया सृष्टि का विनिर्माण।। वय द्वयसहस्त्रएकाशीति में, हो सुदीर्घ संस्कृति वितान। मनु सम्मोहक कर वसुंधरा, चूमें द्रुत गति से आसमान।। नित रंग भरे नूतनता का, वह विश्व चित्र का चित्रकार। हो परिपूरित प्रतिएक लक्ष्य, हो उन्नति पथ जग समाहार।। नित ही आत्मा के गह्वर में, उपजे शुचिता,आलोक शुद्ध। हो शमन दनुजता का जग में, हो दुर्विकार मनुसुत प्रबुद्ध।। सत शांति समुज्ज्वलता प्रकर्ष, जिससे हो तिमिरों का विकर्ष। सुस्वागत हो इसका सहर्ष, है यह हम सबका नवल वर्ष।। ©सूर्यम मिश्र आदि नववर्ष विक्रम संवत २०८१ की अनहद मंगलकामनाओं सहित,....🙏 Read more »
कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति नमन मां शारदे, नमन, लेखनी ना ग़म तेरे आने का है, ना ग़म तेरे जाने का है। गुज़ारे थे जो लम्हें साथ, ग़म तो उनके गुज़र जाने का है। बड़े आराम से गुज़रे शाय़द अब ये ज़िन्दगी, पर ग़म अब तेरे ना सताने का है। रातें भी होंगी शायद अब सुकून भरी, पर ग़म तेरा ख्वाबों में ना आने का है। यादें तो क़ैद हो गई इन आँखों में, पर ग़म नज़रें ना मिल पाने का है। तुम तो आए और आकर चले गए, ग़म तो वक्त के ना ठहर पाने का है। ना ग़म तेरे आने का है, ना ग़म तेरे जाने का है। गुज़ारे थे जो लम्हें साथ, ग़म तो उनके गुज़र जाने है। ©सम्प्रीति Read more »
ग़ज़ल © रेखा खन्ना दर्द सारी रात कराहता रहा अश्कों की भेंट, मैं नींद को चढ़ाता रहा। नीला पड़ा बदन ठंडा होता रहा रूह को तड़पता देख, मैं मौत को पास बुलाता रहा। नासाज़ तबियत से दिल बेचैन होता रहा झूठी तसल्लियों से, मैं दिल को बहलाता रहा। रिश्तों में ग़लतफहमियांँ बेवजह ही पालता रहा आस्तीन के सांँप को मैं रोज़ दूध पिलाता रहा। महक चँदन की थी या रात की रानी महक रही थी रात भर बीन बजा कर मैं नाग को बुलाता रहा। दिल सच्चे प्रेम को दर बदर भटकता ढूँढता रहा रूहानी प्रेम की कहानियांँ, मैं दिल को सुनाता रहा। इबारत लिखी थी किताब में एक इँसान बनने की खुदा की बस्ती में, मैं सच्चा इँसान तलाश करवाता रहा। दिल के एहसास।© रेखा खन्ना Read more »
ग़ज़ल ©गुंजित जैन नमन, माँ शारदे नमन, लेखनी 1222 1222 122 जो उसके गाल को छूते नहीं तुम, ऐ झुमकों खूब-रू उतने नहीं तुम। मेरी ख़ामोशी कैसे जान लोगे? मेरी इक बात तो समझे नहीं तुम। हर इक तरक़ीब को तुम जानते हो, खिलाड़ी हो कोई कच्चे नहीं तुम। मुहब्बत में मैं टूटा जिस क़दर हूँ, भला है उस क़दर टूटे नहीं तुम। मेरी महबूब के हाथों के कंगन, जुदा होने पे क्यों खनके नहीं तुम? मुहब्बत मिल गई तुमको, ख़ुशी है, मलाल इतना है के मेरे नहीं तुम। भला कैसे सुख़नवर तुम हो गुंजित? सियाही से अगर रोए नहीं तुम। ©गुंजित जैन Read more »
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