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प्रतीक्षा ©सौम्या शर्मा

 वर्षों की प्रेम प्रतीक्षा का! तुम देना यह उपहार प्रिये! जब संगम की वेला आए! करना मुझको स्वीकार प्रिये! मेरा तप कठिन उर्मिला सा! लक्ष्मण से तुम हो व्रती प्रिये! संघर्ष हमारा चिरकालिक! है कठिन हमारी नियति प्रिये! फिर भी जब सुख के पल आएं! तुम करना अंगीकार प्रिये! स्वप्नों की स्वर्णिम शैया पर! बस करना मृदुल विहार प्रिये! वर्षों की प्रेम प्रतीक्षा का! तुम देना यह उपहार प्रिये! जब संगम की वेला आए! करना मुझको स्वीकार प्रिये ©सौम्या शर्मा

मान लेते हैं ©दीप्ति सिंह

 जो अक्सर दूसरों की बात,यूँ ही मान लेते हैं । बड़े नादान होंगे वो,ये हम भी मान लेते हैं । अजी आसाँ नहीं है, आजकल इंसान रह पाना , हमारी सादगी को, बेवक़ूफ़ी मान लेते हैं । हमें तो बात सीधे साफ़, लहज़े में कही जाए, नहीं पढ़ते छुपी बातें, जो दिखती मान लेते हैं ।  कभी भी बेहिचक कर दें, बयाँ जज़्बात को अपने,  सभी की नेक नीयत है , ये जल्दी मान लेते हैं । कभी लगता है 'दीया' भी, किसी की आरज़ू  होती ,        मगर रहती हैं कुछ ख़वाहिश, अधूरी मान लेते हैं । ©दीप्ति सिंह 'दीया'

वह मेरे प्रिय रंग में रंग रही हैं ©तुषार पाठक

 जब से उसे यह मालूम हुआ कि मुझे लाल रंग बेहद पसंद है तब से वह मेरा लहू बन गयी है l अक्सर उसके होठ गुलाबी रहते थे, आज कल उसके होंठ  सिर्फ़ लाल ही नज़र आते हैं।  वह अकसर महीनों में एक बार लाल रंग की साड़ी पहनती थी, अब वही हर रोज़ लाल रंग के कपड़े मे नज़र आ जाती हैं।  जो लड़की हाथों पर मेहंदी लगने के बाद भूरे रंग के इंतज़ार में रहती थी, अब वही लड़की मेहंदी के रंग के लाल होने का इंतज़ार कर रही हैं।  जो पहले कभी बहुत नीले शांत सरोवर की तरह थी, अब वही लड़की लाल अंगार की तरह हैं!  जो कभी कलाई घड़ी पहन कर बाहर घूमने निकलती थी अब वही लड़की कलाई पर लाल रंग का धागा बांधती है।  जो लड़की  होली में हर रंग में रंग जाती थी, अब वही लड़की केवल लाल रंग में खूबसूरत दिखना चाहती हैं।  जो लड़की जो सिर्फ़ सफ़ेद रसगुल्ले खाती थी उसे अब लाल -लाल जलेबियाँ पसंद आने लगी हैँ ।  हाँ सच में वह लड़की मेरे प्रिय लाल रंग में रंग रही है। ©तुषार पाठक