मान लेते हैं ©दीप्ति सिंह

 जो अक्सर दूसरों की बात,यूँ ही मान लेते हैं ।

बड़े नादान होंगे वो,ये हम भी मान लेते हैं ।


अजी आसाँ नहीं है, आजकल इंसान रह पाना ,

हमारी सादगी को, बेवक़ूफ़ी मान लेते हैं ।


हमें तो बात सीधे साफ़, लहज़े में कही जाए,

नहीं पढ़ते छुपी बातें, जो दिखती मान लेते हैं । 


कभी भी बेहिचक कर दें, बयाँ जज़्बात को अपने, 

सभी की नेक नीयत है , ये जल्दी मान लेते हैं ।


कभी लगता है 'दीया' भी, किसी की आरज़ू  होती ,       

मगर रहती हैं कुछ ख़वाहिश, अधूरी मान लेते हैं ।


©दीप्ति सिंह 'दीया'

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल दीदी

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