पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'
नमन, माँ शारदे
नमन ,लेखनी
छंद - पंच चामर (वार्णिक)
चरण - 4,मात्रा - 24,वर्ण - 16
जगण रगण जगण रगण जगण +S
सहे सदैव त्रासदा, विपत्ति जो अपार है l
अनेक कष्ट भोगता परन्तु जो उदार है ll
श्रमादिजन्य स्वेद बिंदु देह का सिंगार है l
परार्थ का स्वरूप, दीनता, श्रमावतार है ll
निरीह दृष्टि से समाज को रहा निहार है l
अतृप्त कंठ आर्त वेदना भरी पुकार है ll
प्रकाशवान गेह हों सभी यही विचार है l
परन्तु पर्णधाम में नितांत अन्धकार है ll
वरीय अन्य काज,दी स्वयं व्यथा बिसार है l
परोपकार जीविका रही....... न रंच रार है ll
दरिद्रता दशा विपत्ति का..... न पारवार है l
सहे दुरूह कष्ट,ताड़ना........कई प्रकार है ll
अगाध नीर के समान शांत निर्विकार है l
कठोर देह धारता कुदाल औ कुठार है ll
विछत्त पाद,"रिक्त" पेट राष्ट्र कर्णधार है l
धरा सुपुत्र हे ! तुम्हे.. प्रणाम बार-बार है ll
©संजीव शुक्ला 'रिक्त'
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जवाब देंहटाएंस्तुत्य पञ्चचामर छंद सृजन सर🙏
जवाब देंहटाएंअहा...अत्यंत भावपूर्ण कृषक के समस्त भावों को उकेरता अद्भुत पंचचामर छंद सृजन सर जी🙏🍃
जवाब देंहटाएंवाह, अत्यन्त ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना सर जी 👌👌👏👏 एक ही तुकांत से अत्यधिक आनन्द 😍🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं संवेदनशील छंद बद्ध सृजन 🙏🏼💐
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