होली का चकल्लस ©नवल किशोर सिंह

 खनक रही खुशियाँ झोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


हरा, गुलाबी अरु नारंगी।

भींगी भौजी हाँ सतरंगी।

देवे चुन चुन कर वो गाली।

झूम-झूम मस्तों की ताली।

समवेत हास हमजोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


खड़ी झरोखे नार नवेली।

चंचल चितवन है अलबेली।

होंठ गुलाबी मुस्की प्यारी।

नैनों में मद की पिचकारी।

बौछार रंग की बोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


अंग उत्तंग भर अंगराई।

कजरारी मटकी बलखाई।

मन मतंग लख के मतवाली।

वो पतंग भैया की साली।

ललकार मची है टोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


उड़ती सी सर्र-सर्र धावे।

छुप-छुप रंग-गंग बरसावे।

गोरे कोरे गाल किताबी।

कैसे मल दूँ रंग गुलाबी।

मन हिलकोरे हिंडोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


बहुत जतन करके पछताया।

चतुर मोहिनी पकड़ न पाया।

समझ रहा था जिसको भोली।

वो चपल बंदूक की गोली।

उलझ गया आँख मिचौली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


रंग बिरंगी लथपथ साड़ी।

पास फटक आई इक नारी।

मस्त मदिर मुस्कान सजाकर।

बौराया मन संगत पाकर।

भुज धरके चली ठिठोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


हुड़दंगों की इस बस्ती में।

मन झूम रहा था मस्ती में।

तब उसने ही झकझोर दिया।

सुंदर सपने को तोड़ दिया।

सेहरा बिना ही डोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


सादे जल का पड़ा फुहारा।

जरा गौर से उसे निहारा।

वो मेरे बच्चों की अम्मा।

रक्षा करना माँ जगदम्मा।

समझे न बटुक बकलोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।


आगे क्या तुझे बताऊँ मैं।

अब रोऊँ या घिघियाऊँ मैं।

सम्मुख कुनैन की गोली है।

हलकान हलक में बोली है।

मुँह ढाँपे पड़ा खटोली में।

भरपूर चकल्लस होली में।

     -©नवल किशोर सिंह

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