इंतज़ार ©अभी मिश्रा

 उस नील गगन के अश्रु  को, 

मेरा  मस्तक  छू   जाने   दो,

फिर  गूँज  उठेंगे  गीत  यहाँ,

बरसात का मौसम आने दो।


फिर   नई   लताएँ    झूलेंगी, 

मरघट  सा  पतझड़  भूलेंगी,

बस वक्त को मरहम लाने दो, 

बरसात का मौसम  आने दो।


फिर से छुप कर के  रो लूँगा, 

फिर तुमको होगी खबर नहीं,

उस गरज में आह  छुपाने दो,

बरसात का मौसम  आने दो।


उसमें  ना  मेरा   हित  होगा, 

मन भी मेरा विचलित  होगा,

चेहरों के रंग  धुल  जाने  दो, 

बरसात का मौसम आने दो।


फिर जलमय  हर  बस्ती  होगी,

और जान भी फिर सस्ती होगी,

इस बाँध को बस खुल जाने दो, 

बरसात  का  मौसम  आने  दो।


मेंढक जब  सब  नाहर  होंगे,

और नाग  सभी  बाहर  होंगे,

फिर आत्मधैर्य आजमाने दो, 

बरसात का मौसम आने दो।

                         ©abhi_mishra_


टिप्पणियाँ

  1. बेइंतेहां ख़ूबसूरत रचना ✍️

    ग़हरा जितना ये इंतज़ार होगा,
    धीरे-धीरे ख़ुद से बेज़ार होगा।
    इन नयनों को भीग जाने दो,
    बरसात का मौसम आने दो।

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  2. आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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