होली उल्लाला छन्द में ©अनिता सुधीर

 उल्लाला उल्लाल है,फागुन रक्तिम गाल है।

कहीं लाज से लाल है,कहीं बाल की खाल है।।


भंग चढ़ा कर आज से,छाया क्या उल्लास है।

संगी साथी मग्न हैं,रंग भरा परिहास है।।


पिचकारी हो प्रेम की,जीवन होली रंग हो।

दहन कष्ट का हो सभी,नहीं रंग में भंग हो।।


रूप धरे विश्वास का,आया अब प्रह्लाद है।

अंत बुराई का सदा,यही गूँजता नाद है ।।


होली की इस अग्नि में,राग द्वेष सब भस्म हो।

कर्म यज्ञ हो जीवनी,जीवन की ये रस्म हो।

                     @अनिता सुधीर आख्या

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