क़ायम रहे ©परमानन्द भट्ट
हाथ यूँ तो हाथ में क़ायम रहे
फ़ासले अहसास में क़ायम रहे
वो भी हमको सोचते आजकल
जो हमारी साँस में क़ायम रहे
जेब़ खाली ही रही बेशक मगर
चंद सिक्के आस में क़ायम रहे
बात निकली जब कभी भी इश्क़ की
आप हर उस बात में क़ायम रहे
चाँद सूरज थक गये सारे यहाँ
पर अँधेरे रात में क़ायम रहे
थी हवा विपरीत आँधी भी चली
हम जड़ों के साथ में क़ायम रहे
वो 'परम' ख़ुश रंग मौसम से परे
अश्क़ की बरसात में क़ायम रहे
© परमानन्द भट्ट
Waah 👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी, आशा है मित्रों को ग़ज़ल
हटाएंपसंद आऐगी
उम्दा गजल सर जी 👌🏼
जवाब देंहटाएंअँधेरे रात में कायम रहे ...... वाह्हहहहहहहहहहहह सर❤️❤️❤️👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा👌👌
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन ग़ज़ल 🙏
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