बाहें © विपिन बहार

 तुम्हारें बिन कहूँ कैसे अकेली सी हुई बाहें ।

भटक ऐसी हुई हैं अब पहेली सी हुई बाहें ।।


कहूँ क्या मैं कहानी इन तड़पते करवटों की सुन।

कटा हैं ये वियोगी मन मचलते पनघटों की सुन ।।

कभी भी याद करता हूँ तराने चाहतों के मैं ।

मुझें तब याद आता जब सहेली सी हुई बाहें ।।

तुम्हारे बिन कहूँ कैसे अकेली सी हुई बाहें..

भटक ऐसी हुई हैं अब पहेली सी हुई बाहें..


नही जाना अभी से यार भोली सी डगर को तू ।

मुझे सब यार कहते हैं भुला दे उस शहर को तू । ।

कहा मैं भूल सकता हूँ भला मोहक छटाओं को ।

अभी भी कैद हैं दिल में नवेली सी हुई बाहें ।।

तुम्हारे बिन कहूँ कैसे अकेली सी हुई बाहें ...

भटक ऐसी हुई हैं अब पहेली सी हुई बाहें ...


सितारे ये फ़लक के आज मुझसे बात करते हैं ।

अभी यूँ साथ ही मेरे सनम वो रात करते हैं ।।

रहा में सोचता ये बैठ कर यूँ रात भर ऐसे ।

सितारों में ,हवाओ में ,हवेली सी हुई बाहें ।।

तुम्हारे बिन कहूँ कैसे अकेली सी हुई बाहें ...

भटक ऐसी हुई हैं अब पहेली सी हुई बाहें...

                          © विपिन"बहार"

        

टिप्पणियाँ

  1. बेहद खूबसूरत गजल👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

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  2. बेहद खूबसूरत रूमानी गज़ल 👌👌👌👏👏👏

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