कल्पना ©विराज प्रकाश श्रीवास्तव

 महज कल्पना थी मेरी या इत्तेफाक था ,

मसला मोहब्बत का था जो मेरे साथ था !

तस्वीर हाथों में ले के खोया रहता था रातों में,

ये उदासी मेरे दिल की थी या मौसम खराब था! 


मैं उलझा रहता था उसे सोचते हुए ,

हां ये सपना अधूरा सही पर मेरे साथ था ! 

काफी मशवरा भी लिखा मेरे नाम पे उसने ,

मोहब्बत का रास्ता भी मुझसे अनजान था! 


कबूल कर के मोहब्बत को मैं कहां जाता ,

वो मुझे मिल जाए ये किस्सा अब कुछ आम था ! 

मैं कल्पना करता रहा उसके आने की ,

खामोशियां ने दम तोड़ा ,मेरा लहजा खराब था ! 


मैं महफूज हूं अब जो वो मेरे साथ नहीं ,

दिल से दिल का रिश्ता था,जो अब सिर्फ मेरे साथ था ! 

                           ©  विराज प्रकाश श्रीवास्तव

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना👌👌

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