मुझे दे दो ©परमानन्द भट्ट
तुम अपनी आँख से बहता, सनम पानी मुझे दे दो
जो दिल को सालती हो वो परेशानी मुझे दे दो
ख़ुदा मैं मांगता तुमसे,नहीं दौलत जहां भर की
तेरे दरबार की दाता, महरबानी मुझे दे दो
खु़शी उनको मिले सारी, दुआऐं हम ये करते हैं
ग़मों की दर्द की मौला,ये रज़धानी मुझे दे दो
कबीरा कह गये जग में,खरी जो बात कविता में
ग़ज़ल में शब्द के सच्चे, वही मानी मुझे दे दो
बिछाने फूल है मुझको, हसीं रंगीन राहों में
तुम अपनी राह की यारा, निगहबानी मुझे दे दो
सयाने लोग करते हैं गगन के पार की की बातें
हँसी बच्चों सी देकर के वो नादानी मुझे दे दो
'परम' की चाह बस इतनी, रहो तुम साथ ख़्वाबों में
कभी इक रात भर तुम दिल की सुल्तानी मुझे दे दो ।
©परमानन्द भट्ट
बहुत ही खूबसूरत गजल है सर🙏👍👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल सर👌👌
जवाब देंहटाएंadbhut adutye sirji
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल सर जी👌👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अल्फ़ाज़ मर्मस्पर्शी गज़ल 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंवाह्ह 💐💐
जवाब देंहटाएं👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों का ग़ज़ल की सराहना व
जवाब देंहटाएंहौसला अफ़ज़ाई हेतु आभार