मधुमास ©संजीव शुक्ला
भोर के उज़ारन में, सांझन सकारन में,
रात्रि चंद्र तारन में, आलस का भास है l
गाँव गैल द्वारन में,अँगना चौबारन में,
फरका ओसारन में,छा रही हुलास है l
उर्वरा कछारन में, ऊसर पठारन में,
रूखन पहारन में, बिथरो उजास है l
पोखर पखारन में, खेतन की पारन में,
नदिया की धारन में, मन्मथ रस रास है l
अभिलाषी सारन में,कोकिला सितारन में,
प्रेम की पुकारन में, प्रीतम की आस है l
वाटिका विहारन में ,फूल की कतारन में,
अलि की गुंजारन में, मोहिनी सुवास है l
श्यामली निहारन में,अल्हड़ विचारन में,
तरुणाई भारन में, प्रेम की मिठास है l
काजर की धारन में, नैन की कटारन में,
मत्त मोद कारन में, आयो मधुमास है l
©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'
उत्कृष्ट घनाक्षरी छंद सृजन👌👌वाह👌👌
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट छंद आदरणीय 👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएं😊💐
हटाएंAdbhut Sirji👌👌
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना 👏👏👌👌
जवाब देंहटाएंसुंदर घनाक्षरी छंद भाई 👌👌👌
जवाब देंहटाएं🙏💐
हटाएंअत्यंत सुंदर रचना सर 👏🏻👌👌🙏👏🏻👌👌🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं मनमोहक छंद सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएं🙏💐
हटाएंबेहतरीन सर जी।👏👌🙏
जवाब देंहटाएं🙏💐
हटाएंBahut khoob👌👌
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