अब सूरज निकलना चाहिए © रजनीश सोनी
बढ़ गया है धुंध, अब-
सूरज निकलना चाहिए.
जिस तरह भी हो सके,
रौशन सबेरा चाहिए..
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आँधियों ने उडा़ दीं, (1)
बूँदें जो बादल में रहीं.
बादलों का दोष क्या,
खेती जो सूखी रह गयी.
चाहिए वर्षा अगर,
झोंका ये रुकना चाहिए.
पवन के अभिमान का भी,
रुख बदलना चाहिये.
बढ़ गया है धुंध, अब,
सूरज निकलना चाहिये,
जिस तरह भी हो सके,
रौशन सबेरा चाहिये..
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ले के कुछ अरमान, (2)
बादल, बरसते हैं खेत पर.
पर, नहीं पानी ठहरता,
जो ये बरसें रेत पर.
बादलों का श्रम हो सार्थक,
खेत ऐसा चाहिए.
उपज बढ़ती ही बढ़े,
कुछ, नेत ऐसा चाहिए.
बढ़ गया है धुंध, अब,
सूरज निकलना चाहिये..
जिस तरह भी हो सके,
रौशन सबेरा चाहिये..
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कहते, गरजते हैं जो बादल, (3)
वो बरसते हैं नहीं.
आँधियाँ रुकती नहीं,
बादल ठहरते भी नहीं.
पवन! झंझा रोंक ले,
परिचय तो करना चाहिए.
चाहिए जलधार तो,
आदर भी करना चाहिए.
बढ़ गया है धुंध, अब,
सूरज निकलना चाहिये.
जिस तरह भी हो सके,
रौशन सबेरा चाहिये..
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खेत में पानी रहे तो, (4)
लहलहाती है फसल.
नई कोई बात यह ना,
यह पुरानी है मसल.
इसके खातिर खेत में,
अब पार* बंधनी चाहिए.
बादलों का श्रम हो सार्थक,
भोंह* रुकनी चाहिये.
बढ़ गया है धुंध, अब,
सूरज निकलना चाहिये.
जिस तरह भी हो सके,
रौशन सबेरा चाहिये..
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पार- खेत की मेड़.
भोंह-मेड़ का अंदरूनी पानी निकलने का दरार.
© रजनीश सोनी
उत्तम👌👌👌
जवाब देंहटाएंअत्यंत प्रभावशाली एवं प्रेरक सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंअद्भुत अप्रतिम सृजन सर जी 👌👌👌👏👏👏🙏🙏
जवाब देंहटाएंWaah 👌👌
जवाब देंहटाएंसुंदर 💐
जवाब देंहटाएं👌🏼👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएं👏👏👌👌
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