ग़ज़ल- आशियाँ ©प्रशांत

 मिटाकर चल पड़ेंगे एक दिन अपने निशाँ सारे l

फ़कीरी के यकीं सारे , अमीरी के गुमाँ सारे ll


किसी से क्या करें शिकवे,गिले-नाले सिवा अपने...

दिलों को जीतकर हारे हमीं ने इम्तिहाँ सारे ll


मुकद्दर ने हमें , हमने मुकद्दर आजमाया था...

बरसने थे हमारी ही जमीं पर आसमाँ सारे ll


मेरे मौला! दुआएंँ ला-मकांँ दिल की करो पूरी...

सनम कर दे इसी के नाम अपने आशियाँ सारे ll


अभी अख़बार को पढ़कर बड़ा ताज़्जुब हुआ हमको..

चमक हासिल शहर ने की जलाकर के मकाँ सारे ll


कई रौज़न दर-ओ-दीवार पर हमने बना डाले...

'ग़ज़ल' हमसे खफ़ा हैं अब हमारे राज़दाँ सारे ll


~ प्रशांत 'ग़ज़ल'

टिप्पणियाँ

  1. अहा ❤️❤️ बेहद खूबसूरत गजल

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  2. बेहद खूबसूरत गज़ल.. हर शेर कमाल 👌👌👌💐💐💐

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  3. बेहद खूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल👏🏻👏🏻❤️

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  4. बेहतरीन अल्फ़ाज़ बेबाक गज़ल 👌👌👌👏👏👏

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