मित्रता ©गुंजित जैन
मित्रता, भाव का, भव्य भंडार है,
चित्त की चित्त से, रम्य है भावना।
लेखकों में हुआ, शब्द संचार है,
मित्रता ईश है, मित्रता साधना।।
हर्ष-उल्लास में, नेह आभास में,
सर्वदा मित्र है, शूल में, त्रास में।
अग्नि या नीर हो, कष्ट हो पीर हो,
मित्र हो साथ तो, दूर हो यातना।।
संकटों को सभी, मित्रता ही हरे,
मार्ग से, लक्ष्य से, दूर काँटें करे,
मुस्कराता रहे, नम्र वाणी कहे,
मंदिरों की लगे, दिव्य आराधना।।
श्वास का प्राण का, मित्र आधार है,
शुद्ध भावों भरा, एक संसार है।
अंत ना हो कभी, पावनी मित्रता,
साथ हो सर्वदा, मैं करूँ कामना।।
©गुंजित जैन
सहृदय आभार 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब गुंजित जी।👍👏👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
हटाएंबहुत-बहुत सुंदर रचना भाई 👌👌👌👌👍👍👍👍👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंबहुत आभार🙏🙏
हटाएंBahut khoob 👌👌
जवाब देंहटाएंवाह्हहहह सुंदर छंदबद्ध, लयबद्ध एवं भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार भाई जी🙏
हटाएंBahut khoob 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 👌👌👌
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
हटाएंUttam rachna dosti ke upar👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
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