गीत- हसरतें ©प्रशान्त
वो सामने खड़ी थी , गेसू सुलझ रहे थे l
वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll
इक नाज़नीन मुझसे नज़रें लड़ा रही थी l
शबनम निगाह उसकी, गरमी बढ़ा रही थी ll
वो भी झुलस रही थी, हम भी झुलस रहे थे l
वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll
दो-तीन रोज़ पहले , आई थी वो शहर में l
पहले-पहल दिखा था , इक चाँद दोपहर में ll
मौसम बदल रहा था , बादल गरज़ रहे थे l
वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll
छत पर मुहब्बतों की बरसात हो रही थी l
लब तो सिले हुए थे , पर बात हो रही थी ll
वो भी समझ रही थी , हम भी समझ रहे थे l
वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll
दो अजनबी दिलों में ज़ज़्बात पल रहे थे l
दुनिया जहान वाले सब हाथ मल रहे थे ll
हर दिन मुहब्बतों के अरमान सज रहे थे l
वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll
इक शाम को अचानक, फिर हो गयी क़यामत l
वापस वो जा रही थी , हाए रे मेरी क़िस्मत ll
वो भी तरस रही थी , हम भी तरस रहे थे ll
वो भी उलझ रही थी, हम भी उलझ रहे थे ll
©प्रशान्त
अहा , क्या खूब 👌🏼👌🏼❤️❤️❤️
जवाब देंहटाएंआभार आशीष जी🙏🙏💐💐
हटाएंBahut Sundar rachna 👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद तुषार जी, .. 💐💐💐🙏🙏🙏😊😊
हटाएंWow very romantic ghazal 👌👌👌💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...माँ
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआहार आपका गुंजित जी 🙏🙏💐💐😊
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह्ह 💐💐
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर💐💐💐💐😊😊😊
हटाएंबेहद खूबसूरत बेहद रूमानी गज़ल 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👌👌
जवाब देंहटाएं