ग़ज़ल ©रानी श्री

 गमों के मंज़रों के बीच खुशियों की रवानी है,

यहाँ चढ़ती नहीं पहले कि ढल जाती जवानी है।


भरेंगे ज़ख्म इस दिल के कयामत से कयामत तक,

कयामत बीत जाती है,नहीं मिटती निशानी है।


ज़माना ये किताबें अनगिनत है छाप के बैठा,

मगर हमको नहीं मिलती हमारी जो कहानी है।


रहो फ़िर पास या फ़िर दूर क्या ही फ़र्क पड़ता है, 

मुहब्बत रीत ऐसी है,यहाँ पड़ती निभानी है।


गजब कर के बदल जाती पलों में रुत मुहब्बत की, 

बनी है जिस्म से लेकिन कही जाती रुहानी है।


अमीरी या गरीबी में महज़ ये फ़र्क इतना है,

किसी के आंख में मोती किसी के ढेर पानी है। 


सही लगता मगर सब कुछ गलत है इस ज़माने में, 

नज़र की हर खराबी में सही तू एक 'रानी' है।


©रानी श्री

टिप्पणियाँ

  1. वाह बेहद उम्दा गज़ल 👌👌👏👏💐💐💐

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