असलियत ©आशीष हरीराम नेमा
न दरबारी वजीरों से न ही छोटे सिपाही से ।
फकीरों के जुड़े है तार सीधे बादशाही से ।।
बहा के अश्क़ हमदर्दी जता देना दिखावा है ,
असल मतलब है' इनको सिर्फ अपनी वाहवाही से।।
खुदा की रहमतों वाली अदालत है बड़ी सबसे ,
जहाँ पर फैसले होते नहीं झूठी गवाही से ।।
अगर यूँ ही चली हर बार मनमर्जी तुम्हारी ही ,
पड़ेगा फर्क क्या बोलो मिरी हामी मनाही से ।।
चलें जो तान कर सीना सफेदी है लिबासों में ,
सियासतदार वे सब खौफ खाते है सियाही से ।।
अभी के शोर से दुगुनी फकत खामोशियाँ होंगी ,
नया आगाज जब होगा कयामत की तबाही से ।।
बिना दीदार के जो इश्क़ को बेरंग कहते हैं ,
वे' शायद वास्ता रखते नहीं इश्क़ेइलाही से ।।
© आशीष हरीराम नेमा
उत्कृष्ट👏👏
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल👌👌👌
जवाब देंहटाएंआभार मैम 🙏🙏
हटाएंBahut Sundar rachna badhiya ji ❤️
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंउम्दा रचना 👏👏
जवाब देंहटाएंआभार ��
हटाएंबेहतरीन गज़ल 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंआभार मैम 🙏🙏🙏
हटाएंAmazing 👏
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंआभार सर जी 🙏🙏
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