असलियत ©आशीष हरीराम नेमा

 न दरबारी वजीरों से न ही छोटे सिपाही से ।

फकीरों के जुड़े है तार सीधे बादशाही से ।।


बहा के अश्क़ हमदर्दी जता देना दिखावा है ,

असल मतलब है' इनको सिर्फ अपनी वाहवाही से।।

 

खुदा की रहमतों वाली अदालत है बड़ी सबसे ,

जहाँ पर फैसले होते नहीं झूठी गवाही से ।।


अगर यूँ ही चली हर बार मनमर्जी तुम्हारी ही ,

पड़ेगा फर्क क्या बोलो मिरी हामी मनाही से ।।


चलें जो तान कर सीना सफेदी है लिबासों में ,

सियासतदार वे सब खौफ खाते है सियाही से ।।


अभी के शोर से दुगुनी फकत खामोशियाँ होंगी ,

नया आगाज जब होगा कयामत की तबाही से ।।


बिना दीदार के जो इश्क़ को बेरंग कहते हैं ,

वे' शायद वास्ता रखते नहीं इश्क़ेइलाही से ।।


                                   © आशीष हरीराम नेमा


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