युवा! © तुषार पाठक

 उनकी बातों को नही समझा जाता, न ही उनकी बात को महत्व दिया जाता है। उनको अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण निर्णय खुद नही लेने दिए जाते है।

बस एक ही बार में उनको उनकी औकात दिखा दी जाती है,

न ही उनके प्रतिभा को दिखाने का मौका दिया जाता है,

उनकी असफलता पर उनका मनोबल गिरा दिया जाता है, उनको मन से हारने के लिए मज़बूर  किया जाता है।

और उनकी किसी सफलता को  भाग्य से जोड़ दिया जाता है।

उनको हर बात पर डाट दिया जाता है,वह पिसते रहते है, रिश्तेदारो से तो कभी  सरकारों से। 

उनको हर किसी बात के लिए किसी न किसी चीज़ से डरा दिया जाता है। उनको हमेशा किसी और की गलती के लिए भी डाट दिया जाता है। उनकी  चुप्पी को उनकी कमज़ोरी समझा जाता है, उनके  लगतार प्रयासों को असफलता समझा जाता है।

उनको रोने भी ठीक से नही दिया जाता , तुम लड़के हो ,तुमको आँसू  बहाने का हक नही।

उनको उनके दोस्तों  से दूर किया जाता है, तोह उनको किसी लड़की से प्यार भी नही करने दिया जाता, धर्म-जाति  का ज्ञान दे दिया जाता है, उनकी काबिलियत को दहेज से तोला जाता है। वही उनका पेट तानो से भरा जाता है।

उनके अंदर के बच्चे को वहीं  उसके अंदर मार दिया जाता है।

उनकी चेहरे की मुस्कुराहट को कहीं  दफना दिया जाता है।

देश के युवा के साथ नही, देश के  भविष्य के साथ  खेल खेला जा रहा है।


         © तुषार पाठक

टिप्पणियाँ

  1. सार्थक एवं विचारणीय लेख तुषार 👏👏👏💐💐💐💐

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  2. एक 'युवा' अंतर्मन की टीस को शब्दों में प्रस्तुत करता लेख... बहुत खूब तुषार जी...👌💐✨

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