गीत-गुल-हज़ारा ©संजीव शुक्ला
आसमाँ का सितारा लिखूँ,या कोई गुल-हज़ारा लिखूँ l
नूर कैसे भरूँ हर्फ़ में,....... अक़्स कैसे तुम्हारा लिखूँ l
झील में एक खिलता कँवल,
मरमरी रौशनी का महल l
मखमली वर्क पे सुर्ख़रू ,
एक शादाब महकी ग़ज़ल l
खुश्बुओं का इशारा लिखूँ, जन्नतों का नज़ारा लिखूँ l
हाए झुकती हया से नज़र,
या चुराता बदन गुलमुहर l
चंद सिंदूर की सुर्खियाँ,
सुर्ख रुख़्सार पे दो भँवर l
इक सुलगता शरारा लिखूँ,महवशी माह-ए-पारा लिखूँ l
कैसे आए नज़र को यकीं,
कोई होता है इतना हसीं l
यूँ मुकम्मल वफ़ा हुस्न का,
अक़्स होगा जहाँ में कहीं l
इकअदा का इज़ारा लिखूँ,किस तरह हुस्न सारा लिखूँ l
नूर कैसे भरूँ हर्फ़ में,...... अक़्स कैसे तुम्हारा लिखूँ l
©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'
बेइंतहा खूबसूरत गीत 👌👌👌💐💐💐
जवाब देंहटाएंAdbhut geet Sirji 👌👏
जवाब देंहटाएं😊💐
हटाएंअहा ❤️❤️
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संजीव सर जी...💐🙏✨
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रूमानी गज़ल 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंवाह 👏👌👌
जवाब देंहटाएंBahut sundar 👏👌
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