नज़्म- चाँद उतरेगा ©सूर्यम मिश्र
भरूँगा आंख में पानी,
तो उसमें चाँद उतरेगा।
निकल कर फिर लड़ेंगे हम,
उसी के दरमियां आकर।
बढ़ा कर हाथ हम उस तक,
कहेंगे घूम लो चल कर।।
यकीं है, वो न आएगा,
मगर कहने में खामी क्या?
रहेंगे साथ उसके हम,
वफ़ा की इब्तिदामी क्या?
भगाएगा वो चौखट से,
मगर हम भी न मानेंगे।
कहेंगे, इश्क है तुमसे,
तुम्हारा ग़म न जानेंगे।।
मगर इस बार रो करके,
वो मुझसे हाथ जोड़ेगा।
कहेगा यार तुम जाओ,
मेरा वो क़ल्ब तोड़ेगा।।
मेरा फिर ख़्वाब टूटेगा,
ये आंखें ख़ुश्क होंगी जब।
उठूंगा, चल पडूंगा मैं,
किसी इक रास्ते पर तब।।
चलूंगा और चलूंगा मैं,
चलूंगा चल सकूं तब तक।
भरूंगा सांस भर-भर के,
भरी जाएगी वो जब तक।।
मगर फिर ख़त्म होगी हद,
उलट कर गिर पडूँगा मैं।
न उठ पाऊंगा मैं अब फिर
कहो कब तक लडूंगा मैं!
गिरा बेजान मैं बस यूँ,
कहूंगा फिर कि आ जाओ।
हैं नीली पड़ गईं आँखें,
तुम आओ औ समा जाओ।।
मगर फिर से वो दिन आकर,
उसे ले साथ जाएगा।
वो अपने पास रख लेगा,
मुझे वो ना दिखाएगा।।
जमीं पर हम गिरे होंगे,
लिखेंगे आखिरी ग़ज़लें।
न चाहेंगे कि फिर से सांस,
उखड़ी है वो अब सम्हले।।
मेरे सँग यार फ़िर ऐसे,
वबा का दौर गुज़रेगा।
भरूंगा आँख में पानी,
तो उसमें चाँद उतरेगा।।
©सूर्यम् मिश्र
कमाल की नज़्म हुई है✨✨
जवाब देंहटाएंबेहद बेहद बेहद खूबसूरत नज्म🌹🌹
जवाब देंहटाएंबेहतरीन नज़्म हुई है 💐
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत नज़्म भाई
जवाब देंहटाएंवाह 🙏🙏❤