सपना ©लवी द्विवेदी

 घर में भीषण आग लग गई जो बुझने का नाम ही नहीं ले रही थी और उसमें ऊपर से इस गर्मी की मार.. धूप की भयंकर तपिश और उस अग्नि ने इतना भयंकर रूप ले लिया था कि मानो सब कुछ जलकर राख हो जाएगा.....

सब इधर उधर भाग रहे थे.... चीखते चिल्लाते रोते सिहरते....

कई घंटे इसी मंजर में बीते....

फिर अचानक मेरी नजर आसमान की ओर पड़ी जैसे वो मुझे कह रहा हो कि कुछ देर रुको सब ठीक हो जाएगा.....

मैंने उसकी एक न सुनी बस रोती रही सब जलता देख....

कुछ देर बाद अचानक से आसमान का पीला रंग सफेद होने लगा..

मैंने फिर ध्यान नहीं दिया बस घटनास्थल का मंजर देख ही रही थी कि कुछ धीरे धीरे हवाएं चलकर मेरे पास आ मेरे बहते पसीने को शीतलता देते हुए धीरे से कान में बोली...मत रो......

मैंने फिर भी ध्यान नहीं दिया.....बस एकटक देखती सिहरती जा रही थी..

धीरे धीरे आसमान का सफेद रंग पूरा काला हो गया....

हवाएं और तेज चलने लगी जैसे मुझे बहलाने की कोशिश कर रहीं हों...लेकिन मैं उस ओर ध्यान ही नहीं दे रही थी क्योंकि उन हवाओं की ये बेखयाली उस आग को और फैलने में मदद कर रहीं थी.......

तभी अचानक बादल गड़गड़ा उठे.....

जैसे उन्हें मेरा यह व्यवहार पसंद नहीं आया कि इतना समझाने के बाद भी मैं समझ क्यों नहीं रही...... 

मैं एक पल को चुपचाप ऊपर की ओर शांत होकर देखने लगी...इस बार मैं रो नहीं रही थी, थोड़ी खुश थी कि कोई तो है जिसकी डांट में भी मुझे अपनापन लग रहा है और एक आस सी जग गई.....

इस बार मेरी आँखों से आँसू इतना अपनापन पाकर एक कोने से चुपचाप बिना कुछ बताए ही निकल गए....

तब तक आसमान से भी बूँदें गिरने लगीं मैं खुशी के कारण उछल पड़ी कि अब आग बुझ जाएगी....... 

पर कुछ ही बूंदे गिरीं..... जमीन पर कहीं दिख रही थीं तो कहीं नहीं.... कि अचानक फिर धूप आ गई और आसमान एक ही पल में पीला हो गया जो हवाएं मुझे अब तक ना रोने के लिए कह रहीं थीं वही हवाएं सारे बादलों को एक पल में अपने साथ उड़ा ले गईं...

और घर की आग दूर दूर तक फैल गई...

यह सब देख मैं फिर से उसे बुझाने के सारे प्रयत्न करने लगी, कभी इधर भागती कभी उधर, मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, सब मेरे आंखों के सामने जल रहा था और आग बढ़ती ही जा रही थी कि अचानक मेरी नींद खुल गई....

और तभी मैंने सामने मन को सुलगता पाया जिसे बुझाने के प्रयत्न में सारे 

विचार इधर उधर चीखते चिल्लाते भाग रहे थे।

©लवी द्विवेदी संज्ञा

टिप्पणियाँ

  1. बेहद खूबसूरत रचना लवू❣️❣️

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  2. अत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐

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  3. और तभी मैंने सामने मन को सुलगता पाया, जिसे बुझाने के प्रयत्न में सारे विचार इधर उधर चीखते चिल्लाते भाग रहे थे...वाहहहहहहह🙏🙏क्या कल्पना है

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