ग़ज़ल ©गुंजित जैन



दिलकश आलम इतना काजल का होगा,

आँखों पर इक पहरा काजल का होगा।


गुस्ताख़ी जब ये आँखें कर जाएंगी,

उस पर थोड़ा गुस्सा काजल का होगा।


सूरज के रहते ये शब कैसे आई?

शायद ये अंधेरा काजल का होगा।


पास झील के पेड़ों सी पलकें होंगी,

और उस पर नज़्ज़ारा काजल का होगा।


मेरे दिल पर तीर निग़ाहों ने मारा,

मगर निशाना पक्का काजल का होगा।


यूँ आँखों में खोना मेरी गलती थी,

ऐब मगर थोड़ा-सा काजल का होगा।


इन नाज़ुक गालों पर कोई तिल है या,

इनपर उतरा कतरा काजल का होगा।


क़लम रहेगी ज़ुल्फों में उलझी उँगली,

औ' स्याही का प्याला, काजल का होगा।


आँखें बहती-बहती जब दरिया होंगी,

"गुंजित" एक सहारा काजल का होगा।


©गुंजित जैन

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर 👏👏👏

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  2. बहुत बहुत सुन्दर ग़ज़ल भाई👌👌

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