क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ ©तुषार पाठक
न हूँ मै तेरे क्रश की तरह
न ही उसके जैसे दिखता हूँ ,
क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ।
नहीं आता मुझे लड़की पटाना
न ही उनकी बात समझता हूँ
न हूँ मैं उनकी आँखों का सितारा
पर हूँ मैं अपनी माई के लिए
दुनिया का तारा।
नहीं आता तेरी गुलाबी
होठों को पढ़ना ,
क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ ।
नहीं आता तेरी नशीली
आँखों से बचना,
क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ।
नहीं हूँ मैं दूसरे जैसा जो
दिल मे होता है वह
कहता हूँ
पर जब तू सामने होती है
तोह वह भी कहने से डरता हूँ
क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ।
न आता है मुझको
किसी का दिल तोड़ना ,
न किसके दिल के
साथ खेलना जनता हूँ,
मैं जानता हूँ इश्क़ में
घायल हुए मरीजों को
इसलिए अपनी पंक्तियॉ
से उन पर मरहम लगता हूँ।
पर क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ।
©तुषार पाठक
भावपूर्ण रचना 💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत भावपूर्ण रचना 🌹🌹
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत और मासूमियत से भरपूर रचना
जवाब देंहटाएंअति सुंदर एवं भावपूर्ण रचना 💐
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