गीत ©नवल किशोर सिंह

 भास तुल्य सपने दिखला कर।

करते गोपन नहीं उजागर।


पका-पका कर तर्क-तरावट।

तथ्यों में कर दिए मिलावट।

कहते झींगुर बोल रहा है,

झुनकी जब वासव की पावट।


रखते उदयन को बहला कर।


दाँव बना यह बहुत प्रभावी।

लिए विविध ही दर्प दुरावी।

त्याग नीति को राज जमाते,

मानस पर हो जाते हावी।


बातों की कुंडली जमाकर।


चख अंगूरों की लस्सी को।

साँप बना देते रस्सी को।

दया भाव दिखलाते निशिदिन,

अभयदान देकर खस्सी को।


तंदूरों में रान पकाकर।


-©नवल किशोर सिंह

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