धीरता ©अनिता सुधीर
धीरता की नित परीक्षा
धैर्य डरता कब धमक से
ज्ञानियों की भीड़ कहती
अब सहें आलोचना क्या
तीस मारे ख़ाँ सभी हैं
बुद्धि दूजी सोचना क्या
मिर्च लगती जब अहं को
झूठ कहता फिर तमक से।।
सीख जब भी रार करती
भिनभिनाती मक्षिका है
पीर रोती फिर बिलख कर
क्रोध करती नासिका है
चीखता सा घाव रोया
मात्र चुटकी भर नमक से।।
हैं मनुज की जातियाँ दो
सीखतीं या फिर सिखातीं
मर्म गहरा लुप्त होता
ये क्रियाएं जग चलातीं
अनवरत धर धीरता को
मुख दमकता फिर चमक से।।
©अनिता सुधीर आख्या
अतुल्य नवगीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक नवगीत 🙏🙏🌺🌺
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट नवगीत🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत सटीक एवं प्रभावशाली सृजन 💐💐💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंBeautiful
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