महकते हैं ©परमानन्द भट्ट

 धड़कने सुलगती जब, दिलजले महकते हैं

आती जाती यादों के, सिलसिले महकते हैं


आती है महक जिनके, ज़िस्म  के पसीने से

उनके ज़ख्मी पांवों के, आब़ले  महकते हैं


दूरी हो भले लेकिन, दिल से दिल के मिलने पर

मंजिलें निकट आती, फ़ासले महकते हैं


सुरमई अँधेरे में, शाख़ों  के लरज़ने पर

फूल रजनीगंधा के, दिन ढले महकते हैं


तेज बहते धारे में, माँझी के उतरने पर

कश्तियाँ मचल उठती, होंसले महकते हैं


 सत्य जब प्रकट होता, न्याय के उजाले में

धूप बत्ती चंदन से, फ़ैसले महकते हैं


साधना ये सरगम की, पूरी जब 'परम' करते

शब्द श्लोक बन जाते, तब गले महकते हैं


©परमानन्द भट्ट

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