ग़ज़ल ©हेमा कांडपाल
किसी भी शख़्स पर कब मेहरबाँ थे हम
ये था इल्ज़ाम के कुछ बद-गुमाँ थे हम
न लिक्खी ही गई आहें न काम-ए-दिल
तभी जाना के कितने बे-कसाँ थे हम
तुम्हें भी राह से भटका दिया हमने
अजी छोड़ो कभी तो राह-दाँ थे हम
वो चलता साथ भी तो कब तलक चलता
वो क़िस्सा और लम्बी दास्ताँ थे हम
गो मिज़्गाँ में रहे अटके मगर फिर भी
तिरी आँखों में चुभती किर्चियाँ थे हम
मिरी ख़स्ता-मिज़ाजी पर न जाना तुम
है ये मालूम तुमको बद-ज़बाँ थे हम
धरा उजली, शफ़क़ में नूर था जिससे
गगन पर आज किश्त-ए-ज़ाफ़राँ थे हम
सभी कहते सुख़नवर हो बड़े लेकिन
'हिया' कुछ थे तो बस अब राएगाँ थे हम
©हेमा कांडपाल 'हिया'
वाह्ह्हह्ह्ह्ह, बेहद खूबसूरत 🌹🌹
जवाब देंहटाएंआलातरीन ग़ज़ल, वाह ❤️✨
जवाब देंहटाएंWahh ❤️
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल😍 💐💐💐
जवाब देंहटाएंवाह बेहद उम्दा और खूबसूरत गज़ल 👌👌👌❤❤🌺🌺
जवाब देंहटाएंवाह बेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल👌👌
जवाब देंहटाएंवो किस्सा और लंबी दास्ताँ थे हम🔥🔥कमाल की ग़ज़ल🙏
जवाब देंहटाएंWahhhhh
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