अम्मा ©विपिन बहार
कंधे पर बोझा लेकर भी,हँसती,गाती प्यारी अम्मा ।
मेरे जीवन की मानो तो,फूलो सी इक क्यारी अम्मा ।।
पढ़ना मुझको होता था पर,चिंता उसे सताती रहती ।
मुझसे ज्यादा करती रहती,मेरी ही तैयारी अम्मा ।।
लूडो का हो खेल अनोखा,या शतरंजी बाजी होती ।
मुझकों खुशियाँ देने खातिर,कितनी पारी हारी अम्मा ।।
दासी जैसा रखने वालों,घर की वो रानी थी बाबू ।
घर के कोने-कोने में अब, फ़िरती मारी-मारी अम्मा ।।
जो भी माँगा देती रहती,खुशियाँ अपनी छोटी करके ।
बाबू जी से पैसे रखकर,देती चीज हमारी अम्मा ।।
जीवन की सब खुशियाँ यारा,बस केवल लाचारी थी ।
मेरी यारा,मेरी रानी,मेरी थी अधिकारी अम्मा ।।
© विपिन बहार
बेहद खूबसूरत,, भावपूर्ण गज़ल 🙏🙏🌺🌺
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैंम👏👏
हटाएंबाकमाल, बेहद खूबसूरत ग़ज़ल भैया 👏❣️✨
जवाब देंहटाएंसादर आभार भाई जी👏👏👏
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण गज़ल 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैंम👏👏👏👏
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण ग़ज़ल🙏🙏
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका👏👏
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