ग़ज़ल ©सुचिता

कोई तस्वीर हर्फ़ों में उभरती है ।

महक फूलों की पन्नो में उतरती है ।


चमकते हैं कई जुगनू इन आँखो में..

शबे-ग़म यूँ ही  अश्क़ो से सँवरती है |


उतरता है ज़मीं पर अक्स जब मह का ..

नमी पलकों की कोई ख़्वाब बुनती है |


मुसलसल रूठ जाना हो शग़ल जिनका ..

वो क्या जाने दिलों पे क्या गुजरती है |


कोई ख़ामोश है कुछ इस तरह लोगो ..

पहेली और भी दिल की उलझती है |


तुझी को ढूँढते हैं तुझ में गुम होकर ..

शमा हर पल यूँ सुब्हो -शाम जलती है |


कोई सदियों का बाबस्ता था तुझसे..जो..

मेरी  राहें  तेरे  दर  से  गुजरती  हैं   ।

                                 ©सुचिता वर्धन 'सूचि'

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