मजदूर दिवस ©रजनीश सोनी
श्रमिक खडा़ क्या सोच रहा है?
मन को तू क्यों कोस रहा है?
तेरी ही मेहनत का प्रतिफल,
यह रौशन संसार,
तेरे श्रम पर सब कुछ निर्भर,
तू सबका आधार।
तूने मंदिर,भवन बनाये,
ताज महल औ' शहर बसाये,
सड़क तुम्हारी मेहनत का फल,
दौडे़ सर सर कार।
तेरे श्रम पर सब कुछ निर्भर,
तू सबका आधार।
नहर बाँध और ये बिजलीघर,
आयुध निर्माणी,पुतलीघर,
यह इस्पात कारखाना भी
मेहनत की ही बलिवेदी पर।
तेरे श्रम की ही पटरी पर,
रेल की यह रफ्तार।
तेरे श्रम पर सब कुछ निर्भर,
तू सब का आधार।
तेरे हाथ न रुकने वाले,
श्रृजन निरंतर करने वाले,
वायुयान जलयान बनाये।
भूतल क्या भूगर्भ भेदकर,
खनिज,कोयला लाने वाले।
तेरे श्रम पर ही आधारित ,
कोयला कारोबार।
तेरे श्रम पर सब कुछ निर्भर,
तू सबका आधार।
उथल पुथल धरती पर कितने-
हुए युगों से कौन ये जाने।
लेकिन हर युग का होता है,
श्रमिक ही श्रृजनहार।
तेरे श्रम पर सब कुछ निर्भर,
तू सब का आधार।
तेरे श्रम के शंखनाद से,
हो जाते उद्योग स्थापित।
तेरे श्रम के हूँकार से,
हो जाते पर्वत विस्थापित।
तू चाहे तो अपने श्रम से,
बदले, नदी की धार।
श्रमिक तुम्हारा श्रम ही तो है,
रचना का आधार।
तेरे श्रम पर सब कुछ निर्भर,
तू सब का आधार।
भला बुरा अपना पहचानो,
उद्योगों को अपना जानो,
अखिल विश्व के भाग्य विधाता,
उद्योगों के जीवन दाता,
डूबते उद्योगों को बचाती,
श्रम की अविरल धार।
तेरे श्रम पर सब कुछ निर्भर,
तू सब का आधार।।
श्रम का मोल जो नहीं समझता,
शोषण कर आहत मन करता,
ऐसे उद्यम और उद्यमी-
को, मेरा धिक्कार.
तेरे श्रम पर सब कुछ निर्भर,
तू सबका आधार.
@रजनीश सोनी "रजनीश"
Bahut Sundar Sirji 👌👌
जवाब देंहटाएंनमन🙏🙏उत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंलाजबाब कविता 👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं प्रभावशाली सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी 💐
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