ग़ज़ल-अनजान ©संजीव शुक्ला
बहृ - बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
वज़्न - 2122 2122 2122 212
चाँद जो रखता है दिल में हम न वो अरमान हैं l
चाँदनी पहचानते हैं पर........ न हम नादान हैं ll
हैं चुभे रग-रग में नश्तर.... पारा-पारा है अना....
आपको दिखते हैं जो हम वो न पत्थर जान हैं ll
हो चुकीं सदियाँ कभी जो ख़ाक जलकर हो चुका..
इक शरारा रह गया है........... हम नही बेजान हैं ll
हमसफ़र अब रास कोई भी हमे आता नहीं....
साथ हमराही हमारे....... राह के तूफ़ान हैं ll
मर चुके कब के मगर ये बात मानें तब न हम..
ख्वाहिशें जिन्दा रहीं... चढ़ती गयीं परवान हैं ll
छोड़ आये हम न जाने कितने रंगों के महल...
खल्वतों में आशियाँ तो है...मगर वीरान है ll
नाम की ख्वाहिश कोई बाक़ी नही है "रिक्त"अब....
चंद लोगों से हमारी......... मुख़्तसर पहचान है ll
©संजीव शुक्ला 'रिक्त'
Adbhut adutye sirji 😍😍
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
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हटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल👌👌👌
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंबहुत खूब 👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अल्फ़ाज़ लाजवाब गज़ल 👌👌👌👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़जल
जवाब देंहटाएं😊💐
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