छंद - लेखनी की गर्जना ©प्रशान्त
हर्ष हो या वेदना हो , वन्दना, आलोचना हो l
कामना है सर्वव्यापी , लेखनी की गर्जना हो ll
लालसा औचित्य की हो, रौशनी आदित्य की हो l
हो यही उद्देश्य पूजा , साधना साहित्य की हो ll
सूक्ष्मदर्शी भावनायें , दूरदर्शी चेतना हो ll
कामना है सर्वव्यापी , लेखनी की गर्जना हो ll
लेखनी ऊर्जा जगाए, छन्द लिक्खे, गीत गाए l
लेख , किस्से या कहानी, भावना के संग आए ll
लेखनी के साथ सोना, लेखनी ले जागना हो ll
कामना है सर्वव्यापी , लेखनी की गर्जना हो ll
हास्य का श्रंगार भाता , क्रोध सारा शांत पाता l
वीरता, वात्सल्य में भी लेखनी से तेज आता ll
भिन्नता में एकता की , पारदर्शी लोचना हो ll
कामना है सर्वव्यापी , लेखनी की गर्जना हो ll
डूबता संसार सारा, लेखनी ही है सहारा l
हौसलें हों लौह रूपी, पास आता है किनारा ll
ईश की ऐसी कृपा हो, पूर्ण सारी कामना हो ll
कामना है सर्वव्यापी , लेखनी की गर्जना हो ll
©प्रशान्त 'ग़ज़ल
सुंदर छंदबद्ध गीत 💐
जवाब देंहटाएंअति सुंदर एवं प्रभावशाली छंद सृजन 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंअद्भुत गीत👌👌 उत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंWaah 😍😍
जवाब देंहटाएंआप सभी का कोटि कोटि धन्यवाद ... आप सबके स्नेह और आशीष से आज ही जानलेवा बीमारी से मुक्त हुआ हूंँ... पत्नी का स्वास्थ्य भी काफी सुधरा है.... शीघ्र ही आप सबके सानिध्य में वापस आता हूँ l आo विदुजनों को प्रणाम... @ संजीव सर, दीप्ति मैम... प्रिय गुंजित जी और तुषार भाई कोस्नेह
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण एवं उत्साहित करने वाली रचना 👏👏👏
जवाब देंहटाएंअद्भुत 👏👏👌👌
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