कौन? ©सौम्या शर्मा

 मेरी जिंदगी की रंगीनियां सबने देखीं हैं!

मेरी जिंदगी की गर्दिशें समझ पाया है कौन?

लबों ने जो कहा वो सबने सुन लिया लेकिन!

मेरी खामोशियों से लफ्ज़ चुन पाया है कौन?

तुमने देखीं हैं मुस्कुराहटें खिलखिलाती हुई!

कशमकश दिल की मेरे परख पाया है कौन?

मेरी खुशियों में शरीक हर वो शख्स लेकिन!

मेरे गमों की करने ताकीद यहां आया है कौन?

मैं जब पौधा था, मैं तब भी बरगद था यारों!

मेरी जड़ों को आज तक हिला पाया है कौन?

आईना दिल की हकीकत नहीं दिखाता जनाब!

गनीमत है वरना खुद से नजर मिलाया है कौन?


                                 © सौम्या शर्मा

टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत भावपूर्ण रचना बेटा👌👌👌

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  2. बेहद खूबसूरत और गहन भाव समाहित किये हुए 👌👌👌👏👏👏

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