कुछ वक्त तुम्हारे शहर में गुजार के देखते हैं ©विराज प्रकाश श्रीवास्तव

 चलो कुछ वक्त तुम्हारे शहर में गुजार के देखते हैं ,

वो भूली यादें तुम्हारी रातों में निहारते हैं !

मैं जब भी मिलता हूं तेरे शहर के लोगों से ,

वो मुझे मुझसे नहीं ,तेरे नाम से पुकारते हैं !


चलो कुछ वक्त तुम्हारे शहर में गुजार के देखते हैं .....


रंजीदगी से लबरेज है तेरे शहर की हवा ,

चलो सेहर को खूबसूरत बना के देखते हैं !

तेरे शहर में जो भी मिला गमजदा मिला ,

चलो भीड़ में हम अपनी पहचान बना के देखते हैं ! 


चलो कुछ वक्त तुम्हारे शहर में गुजार के देखते हैं .....


फूल भी खिलना भूल चुके हैं अब तेरे शहर में ,

कांटे भी अब अपना हक मुझपर जताना जानते हैं !

और जब भी मैं याद करता हूं वो रूहानी रात ,

लोग मुझे सपने में भी तेरा होने से रोकते हैं ! 


चलो कुछ वक्त तुम्हारे शहर में गुजार के देखते हैं .....

© विराज प्रकाश श्रीवास्तव

टिप्पणियाँ

  1. बहुत-बहुत सुंदर रचना 😊👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह्हहहहहहह , बहुत खूब.... भावपूर्ण रचना💐💐💐💐💐

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'